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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

श्यामा यह सब देखकर अवाक् रह गयी। उसकी गोरी-गोरी उँगलियाँ बाजे के परदों पर पड़ी की पड़ी रह गयीं। उससे कुछ भी करते न बन पड़ा। अब भी उसकी छाती पर वही हार और माला सुशोभित थी।

श्यामा ने एकदम अपने को सम्भाला। तुरन्त पति के पास पहुँची। किसी प्रकार से कुछ मुस्कराहट भी उसके मुँह पर आ गयी। श्यामा ने समझा, प्यारे पति के दु:ख में यह मुस्काराहट अच्छी औषधि होगी। ऐसे दु:ख में सरला श्यामा को मुस्कारते देखकर शशि को हँसी आ गयी। उन्होंने चुपचाप श्यामा को पकड़कर छाती से लगा लिया। उनकी आँखों में दो बून्द आँसू छलछला आये।

श्यामा ने उन्हें ढाढ़स देकर सब हालचाल जानने की कोठी में भेजा। बाहर आते ही उन्हें एक तार अपने आढ़ती का मिला कि साढ़े सात लाख का बिल कल चार बजे तक अवश्य अदा करना पड़ेगा। शशि को काठ मार गया। वापस घर आकर चारपाई पर पड़ गये। अचानक इस दु:ख की शशि सह न सके। उनका हृदय विदीर्ण होने लगा। एकाएक कुछ सोच वह उठ खड़े हुए। एक बार श्यामा ने रोकना चाहा, पर वह उन्मत्त की तरह चले ही गये।

कुछ सोचकर श्यामा ने एक जौहरी को बुलाया और अपने सारे जेवर साढ़े सात लाख में बेच डाले। एक छल्ला भी बाकी न छोड़ा। और वेश बदलकर स्वयं बैंक में जाकर साढ़े सात लाख का बिल चुका दिया। तब वह चुपचाप अपने घर आ बैठी। देखा शशि अभी नहीं लौटे हैं। वह अपने मित्रों से सहायता लेने निकले थे, पर कोई तो घर नहीं मिला, किसीका मिजाज़ ठीक नहीं था। मतलब यह कि निराश हो वह बैंकर के पास गये और कहा, "महाशय! कल मैं यह बिल किसी प्रकार अदा नहीं कर सकता!” बैंकर ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और कहा, ‘महाशय, एक स्त्री आपका बिल चुका गयी है।”

"स्त्री चुका गयी?” शशि ने आश्चर्य से उसकी ओर देखकर पूछा, "हाँ महाशय! बिल चुक गया है।” शशि बाबू बड़े असमंजस में पड़े कि किसने ऐसा किया? श्यामा ने? इसी विचार में शशि घर आ रहे थे। द्वार पर पहुँचते-पहुँचते मुनीम उनको बुला कोठी में ले गया और एक तार देकर कहा, "ईश्वर का धन्यवाद है कि वे जहाज़ सिर्फ भटक गये थे। एक में कुछ हानि हुई है पर वह बीमा किया हुआ है। अब वे बम्बई पहुँच गये हैं और बंगाल बैंक के नाम से दस लाख का चेक है।” शशि ने अचकचाकर सब सुना। एक ही दिन में ऐसा परिवर्तन देख शशि पागल-से हो गये। धीरे-धीरे सम्भलकर घर आये। श्यामा तब भी धीरे-धीरे बाजा बजा रही थी।

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