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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

धीरे-धीरे शशि श्यामा के पीछे जा खड़े हुए। उन्होंने श्यामा के मोढ़े पर हाथ रखकर कहा, "श्यामा! इधर आओ!” एक कोच पर दोनों बैठ गये। शशि ने श्यामा के दोनों हाथ पकड़कर कहा, "श्यामा! तुमने चोरी की है; बोली सच्ची बात है न?” सरलता से श्यामा हँसकर बोली, "तुम्हारी बात कभी झूठ हो सकती है? हमने तुम्हें ही न चुराया है? इसीकी सजा देने आये हो? अच्छा, क्या सजा दोगे, कहो!” "इधर आ पगली! बड़ी व्याख्याता हो गयी है।” कहकर शशि ने श्यामा की छाती से लगाकर दाब दिया। फिर उसकी गोद में लिटाकर उसके बाल सुधारते हुए बोले, "अच्छा कहो, क्या सचमुच तुम ही ने बिल चुकाया है? कहाँ से चुकाया? बताना; रुपया कहाँ से मिला?”

बात सुनकर श्यामा पहले ताली बजाकर हँस पड़ी। फिर दोनों हाथों को शशि के गले में डालकर कहा, "मिलता कहाँ से। हमारे एक प्रेमी ने हमें गहने बनवा दिये थे, उन्हींकी बेचकर चुका दिया है।”

अचकचाकर शशि बोले, "अरे क्या, जेवर बेच दिया? इतना साहस? यह क्या सूझी? क्या माला और हार भी...?”

श्यामा, "दोनों अँगूठी भी।”

शशि की आँखों में पानी भर आया। वह उसे छाती से लगाये कुछ देर खड़े रहे। फिर, "किसे बेचा है” पूछकर बाहर आये। सीधे जौहरी के पास गये। उन जवाहरात को देखकर वह खुश हो रहा था। सचमुच बड़ा लाभ का माल था। तभी शशि पहुँच गये। कुछ मुनाफा देकर सब वापस ले लिया और घर आकर श्यामा के गले में अपने हाथ से जेवर पहनाकर कहा, "पगली! ऐसे अमूल्य जेवर तूने कैसी बेरहमी से बेच दिये?" श्यामा ने दोनों हाथ पति के गले में डालकर आँखों में आँखें भरकर कुछ शर्म से अपने सिर को पति की छाती पर टेककर कहा, "प्यारे पति से बढ़कर स्त्री के लिए और कौन-सा आभूषण है?”

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