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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

दोनों के मिलने पर प्रतिबन्ध था। माँ नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी हृदय के बाज़ार में बिके। वह हृदय को लेकर क्या करेगी? उसे चाहिए-रुपया-रुपया !

वही रुपया आज उसने पाया है। रज्जू ने दुकान से रकम उड़ा लाकर उसे दी है। आज वह कामिनी से मिलने आया है। उसने कामिनी के आगे दोनों हाथ पसार दिये। कामिनी उठकर आगे बढ़ी और उसके आलिंगन में आबद्ध हो गयी।

युवक के हाथ पर रखी हुई चार अशफियाँ धरती पर गिर गयीं। रज्जू ने आत्म-विस्मृत होकर कहा, "कामिनी, हमारा मिलना कठिन है!"

"कामिनी ने आतंकित स्वर में कहा, "कठिन तो है, परन्तु...”

"परंतु क्या?"

तुम उसे सरल कर सकते हो।” उसके स्वर में वेदना थी।

"कैसे?” युवक ने कहा।

कामिनी बैठ गयी, युवक भी बैठ गया।

कामिनी ने कहा, "बाधा क्या है? कहो!”

"तुम्हारी माँ रुपये माँगती है।”

"रुपया में कहाँ से लाऊँ?"

"क्यों? चुरा सकते हो, कुछ चीज़ बेच सकते हो। यह तुम्हारी घड़ी ही शायद एक महीना चला दे।”

युवक को कामिनी के मुख से इन बातों को सुनने की आशा न थी। वह अवाक् हो गया। कामिनी ने उसी सिलसिले में कहा, "यह तो बहुत साधारण है। तुम ज़रा-सा साहस करते ही रुपया दे सकते ही, पर रुपया देने से भी मुझे न पा सकोगे।”

"यह क्यों? फिर क्या बाधा रह गयी?”

"मैं स्वयं इसमें बाधा दूँगी"

"सच? तब क्या तुम मुझे नहीं चाहतीं?”

"प्राणों से भी बढ़कर। यदि तुम न मिले तो मैं प्राण त्याग दूँगी।”

"तुम मुझे वेश्या का मूल्य देकर नहीं खरीद सकोगे।”

"वेश्या का मूल्य क्या है?”

"धन!"

"फिर?"

"मुझे तुम्हें कुछ और देना होगा।”

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