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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

"क्या-हृदय?” युवक मुस्कराया। उसने कहा, "कामिनी, यह हृदय तुम्हारा है।”

कामिनी वैसी ही गम्भीर बनी रही। उसने कहा, "नहीं, हृदय नहीं-हृदय देकर भी मुझे न पा सकोगे!”

"तब क्या देना होगा?” युवक ने हड़बड़ाकर कहा।

"वचन।"

“वचन ?"

“हां।”

"क्या वह प्रेम से भी अधिक है?”

"प्रेम तो उसके साथ बँधा हुआ है?”

"वह वचन क्या है?"

"यही कि तुम धर्म से मेरे पति होगे, और मैं पत्नी!”

"रज्जू ने एक बार फाड़कर कामिनी को देखा, फिर उसने दोनों हाथ फैलाकर कहा, "कामिनी, यह कैसे सम्भव हो सकता है? मेरा विवाह पक्का हो गया है। जाति-बन्धन बड़े कठिन हैं। ओह! यह बहुत कठिन है।”

"तब जाओ! तुम मुझे न पा सकोगे। मेरा शरीर और हृदय दोनों ही आत्मा की सम्पति हैं। जो कोई आत्मा का अधिकारी होगा, इन चीजों का भी होगा।”

"और इनके अधिकारी होने की विधि?”

"विवाह।”

युवक सोचने लगा। कामिनी मूक खड़ी थी। विवाह? क्या यह सम्भव हो सकता है? ज्यों-ज्यों विचार की धारा गम्भीर होती थी, वह विवाह के अनुकूल हो रहा था। जाति, सम्पत्ति, सामाजिक जीवन सब कुछ एक स्त्री के लिए त्यागना साधारण काम न था। अन्तत: उसने निश्चय कर लिया। उसने हर्षोंत्फुल्ल स्वर में कहा, "कामिनी, मैंने सोच लिया है, मैं तुमसे विवाह करूंगा।”

कामिनी हँस दी। उसकी आँखों में आँसू आ गये। उसने आगे बढ़कर युवक के चरण छुए और हाथ आँखों पर लगाये। फिर वह उसके चरण छूकर फूट-फूटकर रो उठी।

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