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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

कामिनी उदास बैठी थी। जो कुछ करना था, तय कर लिया गया था। वह प्रत्येक क्षण रज्जू बाबू के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। रज्जू बाबू आये। उसकी आँखों में भय-शंका-उद्वेग था, पर वह चुपचाप बैठी रही।

रज्जू बाबू बुढ़िया से मीठी-मीठी बातें करने लगे। कामिनी और फूलकर बैठ गयी। रज्जू ने कहा, "आज यह इतनी उदास क्यों बैठी है?”

कामिनी बीच में ही बोल उठी, "मैं आज साड़ी लेंगी, तभी खाना खाऊँगी!”

बुढ़िया ने कहा, "साड़ी की अच्छी कही! एक-से-एक बढ़कर साड़ियाँ रखी हैं, पर इसको तो रोज़ नयी चाहिए!”

"मैं ज़रूर लूँगी!”

रज्जू ने कहा, "आखिर कैसी साड़ी लोगी, कुछ सुनूँ भी तो!”

"मैं अपनी पसन्द की लुंगी, और किसीकी भी नहीं!”

कामिनी मुँह फुला बैठी। रज्जू बाबू ने हँसकर कहा, "तब चली, देखें कैसी साड़ी लेती हो! मगर मचल न जाना, एक साड़ी मिलेगी!”

"एक ही तो, मगर मेरी पसन्द की होगी!"

"मन्जूर है!” रज्जू ने नौकर को पुकारकर ताँगा ले आने की कहा। बुढ़िया ने एकाध बार कुछ टीका, फिर राजी हो गयी। रज्जू के साथ कामिनी साड़ी खरीदने भेज दी गयी। साथ में नौकर भी गया।

बाज़ार में एक स्थान पर ताँगा खड़ा करके नौकर को पान लाने भेज दिया गया। उसके पानवाले की दुकान की ओर मुड़ते ही ताँगा हवा हो गया। मोटर पहले से तैयार खड़ी थी। ताँगा छोड़, मोटर में बैठ दोनों सीधे मजिस्ट्रेट के पास पहुँचे। कामिनी ने जाकर कहा, "मेरी माता मुझसे कुकर्म कराना चाहती है, न करने पर मारती तथा धमकी देती है। पर मैं इस नवयुवक से शादी करना चाहती हूँ। मुझे माँ से आज़ाद किया जाए।”

मजिस्ट्रेट ने फोन उठाया और थाना सकिल नम्बर 4 को हुक्म दिया कि अमुक वेश्या को लेकर अभी इजलास में हाजिर हों। कामिनी को हुक्म हुआ, "कुछ देर यहीं बैठो!"

आधे घण्टे के पश्चात् बदहवास वृद्धा वेश्या कचहरी में घुसी। वह चिल्लाने लगी-उसपर वज्रपात हुआ है। उसकी बेटी उड़ा ली गयी है। दुहाई है!! आदि-आदि। मजिस्ट्रेट ने उसके और लड़की के इजहार लिये। वेश्या के मुचलके करा लिये और कहा, "खबरदार रही, इस लड़की की तरफ नज़र की तो बुरा होगा!” वृद्धा बेचारी रोती-कलपती चल दी।

मजिस्ट्रेट ने युवक से पूछा, "क्या तुम इससे शादी करने को राज़ी हो?”

युवक ने स्वीकार किया। दोनों साहसी प्रेमी अब स्वतन्त्र थे।

एक छोटे-से सुखद बंगले में स्वस्थ सुन्दर दम्पति बैठे एक गुलाब के खिले हुए नवपुष्प के समान नवजात बालक को देखकर सुध-बुध खो रहे थे।

कामिनी ने कहा, "प्यारे, तुम्हारा हृदय या धन लेकर क्या मुझे यह लाल मिलता?”

रज्जू ने कहा, "यह तो तुम्हें घात में मिला; असल लाल तो तुमने पड़ा पाया। तुम बड़ी भाग्यवती रहीं कामिनी!” उसने प्रेम के आवेश में पत्नी का मुख चूम लिया। बालक ने खिलखिलाकर दोनों हाथ ऊपर उठा दिये।

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