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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

ससुराल का वास

ससुराल के भी क्या कहने हैं! धरातल पर वह एक निराली ही चीज़ है। कवि ने कहा भी है कि 'इस असार संसार में ससुराल ही सार है।' ससुराल में यदि एक-दो दिलचस्प सालियाँ भी हों तो बहार ही बहार है। ससुराल अमीर ही या गरीब, बढ़िया हो या घटिया-यह हम दामादों के विचार का विषय नहीं। और हम चाहे जैसे चपरगट्टू, फटेहाल, आवारागर्द हों-इससे भी कोई बहस नहीं। ससुराल में तो हम लाट साहब ही बनकर रहेंगे और ससुराल वालों को सिर के बल हमारी अर्दली में खड़ा रहना ही पड़ेगा।

हमें ससुराल सिर्फ दो-चार बार ही जाने का मौका मिला था। दो-चार दिन रहकर चले आया करते थे। श्रीमती को विदा करा लाते थे। वे दो-चार दिन ऐसी मौज-बहार में बीतते थे, कि बरसों उसीके सपने दीखा करते थे। हम भी रेशमी माँगकर ओर उसे कलाई पर बाँधकर तथा उन्हींकी चाँदी की मूठ की छड़ी और चमड़े का सूटकेस माँगकर ठाठ से जाते, बात-बात में नखरे करते, पचास बार "ना' करने पर नाश्ता दी उगलियों से उठाकर खाते, सौ बार कहने पर खाने को उठते, रोज़ गालों पर 'सेफ्टोरेजर' फेरते, खूब सावधानी से हँसते-और मौका पाकर डींगें भी हाँकते थे। रोज़गार-धन्धा हमारा कुछ था नहीं, पढ़े-लिखे भी सूक्ष्म ही हैं, पर ससुराल में हम यह सब भूल जाते थे।

किस्मत की बात देखिए-ससुराल भी हमको मिली टटपूंजिया। ब्याह से पहले हम ससुराल के बड़े-बड़े सपने देखा करते थे। गौरी बाबू की ससुराल हम गये हैं। क्या शान का महल है! मोटर है, नौकर-चाकर हैं, दास-दासियाँ हैं, चार सालियाँ चाँद के टुकड़े हैं। सब लोग उन्हें ‘राजा जी' और हमें कुंवर जी कहते थे। चलती बार हमें भी जोड़ा कपड़ा और नकदी मिलती थी। गौरी बाबू तो छकड़ा भर लाते थे। हम सोचा करते थे-ससुराल एक दिन मिलेगी हमको भी। यह सोचना तो सच्चा हुआ। ससुराल मिली और फिर मिली। पर मिली सटरपटर। ससुर जी चालीस रुपये के क्लर्क थे। किराये का साधारण मकान था। एक साली थी-वह बहुत छोटी थी, साला अवारागर्द था। सास अलबत्ता बड़ी अच्छी थी, हमें देखते ही बाग-बाग हो जाती थी। दिन भर-खाने-पीने के सरंजाम में ही जुटी रहती। बोलते हुए मुँह से फूल झड़ते थे। फिर भी एक बात की हमें शिकायत थी। हमारी स्त्री सुन्दर न थी। क्यों जी, इसकी शिकायत क्यों न हो? सभी को सौन्दर्य की एक भेंट जीवन में मिलती है। मुझे भी मिलनी चाहिए थी पर तकदीर का चक्कर ही कहना चाहिए। गौरी बाबू की बहू के सामने मेरी श्रीमती क्या चीज़ है!

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