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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

अपराजित

स्टेशन से बाहर आकर देखा-वह सीधा, चित, एक शहतीर के समान सड़क के किनारे एक पटरी पर पड़ा है। उसकी आँखें आधी बन्द और आधी खुली ऐसी दीख रही थीं कि जैसे वह किसी गहन चिन्ता में व्यस्त हो। दाढ़ी-मुंछों के अस्त-व्यस्त खिचड़ी बाल मिट्टी और गन्दगी से लथपथ उसके सारे चेहरे को ढक रहे थे। उसके दोनों होंठ उन दाढ़ी-मूंछों में बिलकुल छिप गये थे। पर पीले, टेढ़े और जड़ें निकले हुए दो दाँत उसके अधखुले मुँह में से बाहर चमक रहे थे। उसके मुंह के इर्द-गिर्द भीतर-बाहर मक्खियाँ स्वच्छन्द आ-जा रही थी। दो-चार हठीली नाक और आँख की गन्दगी पर जमकर बैठ गयी थीं। उसके दोनों हाथ धरती पर निश्चल पड़े थे और पैर सीधे बराबर तने थे। कमर में एक चीथड़ा नाममात्र की उसकी शरम ढांप रहा था। पर जैसे उसकी शर्म अब निर्भय होकर ताक-झाँक कर रही थी। मक्खियाँ तो वहाँ भी अब निश्शंक भीतर-बाहर आने-जाने में व्यस्त थीं। होंठ दीख नहीं रहे थे पर मुख की मन्द मुस्कान और चित्त की शान्ति उस आकृति से फूट रही थी। निश्चय ही जब अन्तिम चित्र अंकित किया जा रहा था-तब उसका तन-मन सब वेदनाओं, चिन्ताओं, सब जिम्मेदारियों से सुध-बुध-मुक्त था।

बगल में एक बहुत पुराने तामचीनी के बर्तन में चाय थी। सम्भवत: रात को अपने अन्तिम सम्पूर्ण मूलधन से, उसने एक प्याला चाय फेरी वाले से खरीदी होगी और उस मूल्यवान चाय को ज़रा सुस्ता कर, थोड़ी तबीयत ठहर जाने पर, उसका पूरा रसास्वादन लेकर पीने की उसकी भावना रही होगी, पर चलाचली की बेला में उसे इतना अवकाश नहीं मिला, चाय उसी पात्र में ठण्डी होती रही-वह बिलकुल ठण्डी हो गयी थी।

चारों ओर काफी भीड़ इकट्ठी हो गयी थी। अभी धूप काफी नहीं फैली थी। ठण्डी हवा बह रही थी। भीड़ के सभी लोग उसे कौतूहल और उत्सुकता से देख रहे थे। बालकों की दृष्टि में भय और वेदना थी। एक-दो बूढ़ी स्त्रियाँ भी थीं। वे करुणा के दो-चार शब्द कह रही थीं। एक पण्डित जी युमना-स्नान कर तिलक-छाप लगाये, रामनामी ओढ़े, उधर से जा रहे थे। वे भीड़ देखकर निकट आये और 'अनित्यानि शरीराणि’ कहकर तथा एक लम्वा शवास खींचकर चल दिये। एक लाला जी देखकर बोले, "शिव, शिव, शिव, बेचारा जाड़े में ठिठुरकर मर गया।” दो-तीन आदमी बोले, ‘ओफ रात कितनी ठण्ड थी?” एक बालक ने भयभीत नेत्रों से साथी की ओर देखकर पूछा, "यह मर गया?" दूसरे ने साहसिकता से कहा, "देखते नहीं, सांस कहाँ चल रही है? मर तो गया !” पहला बालक विमूढ़ हो गया, उसने निकट से मृत्यु-दर्शन किया। उसने साथी से पूछा, ‘अब क्या होगा इसका ?” इसका उत्तर दूसरा बालक नहीं दे सका।

एक कुत्ता कहीं से आकर उसे सूंघने और कूं-कूं करने लगा। फिर थोड़ी देर में वह चला गया। एक पुलिस के सिपाही ने आकर सबको डपटकर हटा दिया।

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