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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

मेरी बात सुनकर उसने हँसकर कहा, "नहीं जी बाबा, हम क्या ब्याह करेंगे?” किन्तु मैंने अपनी हिकमत लड़ायी। नब्ज पकड़कर सिर्फ अनुमान से सैकड़ों झूठ-मूठ बातें कह देने का तो हम लोगों को अभ्यास होता ही है।

मैंने कहा, "तब क्या पिशाब-उशाब में कुछ गड़बड़-शड़बड़ हो गयी है?”

यह बात भी मैंने अनुमान से ही कही थी। सच पूछो तो नाड़ी पकड़कर भी मैं यही प्रश्न करता; क्योंकि मुझे तजुर्बा है कि बम्बई में जिनकी आमदनी दो सौ से ऊपर है, वे इन्हीं रोगों को लेकर आते हैं। पर खेद की बात है, कि मेरा यह अनुमान भी गलत निकला।

खुर्हाट बोला, "अजी मुझे कहीं कुछ नहीं है!"

मैंने सोचा-यह तो बड़ा विकट रोगी निकला, किसी तरह पकड़ में नहीं आता। कहीं ऐसा न हो कि बिना गांठ कटाए ही खिसक जाए।

मैंने जरा नाक-भौं सिकोड़कर कहा, "तो कही मामला क्या है?”

सेठ ने आँखों में आँसू भरकर कहा, "क्या करूं! मर गया! लुट गया। घर में सब हैं। धन में धन है, अन्न में अन्न है, बहू है, पोते-पोती हैं। ऐसे पोती-पोते लाखों में किसके हैं? पर हाय! मेरी तकदीर फूट गयी। मेरा लड़का मर गया।”

मैंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, "किन्तु अब मैं क्या कर सकता हूँ?”

वह बोला, "उसे मरे तो तीन वर्ष हुए। वे जो मेरे पोती-पोते हैं-हा-हा! आप देखोगे तो खुश हो जाओगे-जैसे गुलाब के फूल! पर अब उन्हें खुजली हो गयी है, हाथ-पाँव सड़ गये हैं। पोती रात-दिन रोती है-बाबा मरी, बाबा मरी! कही बाबा साला क्या करे!”

अब मेरी तसल्ली हुई। मैंने कहा, "बस यही बात है? तब दवा ले जाइए। उन लोगों को दो-तीन दिन में अवश्य फायदा हो जाएगा, आज ही रात को उन्हें चैन पड़ जाएगा।” इतना कहकर मैंने नुस्खा लिखने की कलम लेने के लिए हाथ बढ़ाया पर उसने बाधा देकर कहा, "गुरु, आपको एक बार सान्ताक्रूज जाकर उन्हें देखना होगा-आपकी फीस मैं दूँगा, उसका ख्याल न करें।”

मैंने कलम रखकर कहा, "अच्छा, कल मैं देख लूँगा।”

बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा, "तो मैं दस बजे आपको लेने के लिए आऊँगा।”

मैंने कहा, "आपको हैरान होने की आवश्यकता नहीं। में 12 बजे की गाड़ी से स्वयं ही आ जाऊँगा। आप स्टेशन पर मिल जाइएगा।”

बूढ़े ने प्रसन्न होकर कहा, "बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! आप बड़े सज्जन हैं-जैसा सुना उससे बढ़कर पाया।”

मैंने देखा-बात का बतंगड़ हो रहा है। इसलिए कुर्सी से उठकर कहा, "तो बस यही तै रहा! 1 बजकर 10 मिनट पर जो गाड़ी वहाँ पहुँचती है, उसपर मुझे आप स्टेशन पर मिल जाइए।”

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