अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
निदान मन में धारणा दृढ़ की, कि जिस बंगले में सटर-पटर सामान दीखे, जिसमें भद्दापन और बेतरतीबी दीखे, जहाँ पर रंगीन बारजों में धोतियाँ सूख रही हों, जहाँ सामने की रस्सी पर गद्दे और लहंगे टंगे हों-वही अवश्य उस मारवाड़ी सेठ का मकान होगा।
यही विचारकर चोर की दृष्टि से मैं एक-एक बंगले को ताकता चला।
एक मकान एक गुजराती सज्जन पहली मन्जिल पर खड़े, बच्चे को खिला रहे थे। वे एक सफेदपोश जेंटिलमैन को उठाईगीरों की तरह घर-घर झाँकते देखकर बोले, "महाशय, किसे ढूंढते हैं आप?”
मैंने जरा झेंपकर कहा, "एक मारवाड़ी सज्जन का पता लगाना है, जिसका नाम भूल गया हूँ। वे महाशय, मूलजी जेठा मार्केट में कपड़े की दलाली करते हैं। बूढ़े और मोटे-से आदमी हैं, कुछ बकवादी भी हैं।”
गुजराती ने हँसकर कहा, "यह सामने शायद उन्हींका बंगला है। भीतर चले जाइए।”
भीतर जाकर देखा, तो एक कुते ने उच्च स्वर से स्वागत किया। उसे छतरी से धमकाकर मैं आगे बढ़ा। एक युवक ने सामने से आकर कहा, "आपको सेठ से मिलना है? बुलाऊँ उसे?”
मैंने मन में कहा, 'क्या जाने कौन-सा सेठ है!" उसे रोककर मैं बोला, "ठहरो! तुम्हारे सेठ का नाम क्या है?” नाम बताने पर मैंने पूछा, "वे मोटे-से बूढ़े-से और पागल-से हैं न!” युवक ने आश्चर्य से मेरी ओर देखकर कहा, "हाँ, बुलाऊँ क्या ?” मैंने कहा, "ठहरो! उनके पोते-पोती को खुजली का रोग भी तो हो रहा है!”
युवक ने आदर से कहा, "तो आप डाक्टर साहब है! आप विराजिए, मैं सेठ को अभी बुलाता हूँ। वे भीतर सो रहे हैं।”
मैंने झुंझलाकर मन में कहा, 'ऐसी-की-तैसी तेरे सोने की! हम यहाँ झख मार रहे हैं और वह मजे में सोता है।'
सेठ बाहर आये। नंग-धड़ग, सिर्फ एक धोती पहने थे। छाती स्त्रियों जैसी लटक रही थी और तोंद नाद के समान थी। कुल्हे थल-थल कर रहे थे। बाहर निकलते ही उन्होंने तरह-तरह के शिष्टाचार, सलाम, पैगाम, खुशामद शुरू की। कृपा के लिए अनेक धन्यवाद दे डाले। सज्जनता पर तो गद्य-काव्य की रचना कर डाली। मेरा मिज़ाज़ तो गुनगुना हो ही रहा था। मैंने कहा- "आखिर, आपने मारवाड़ीपन दिखा दिया न? जूतियाँ चटखाते वहाँ बुलाने जाते तो ठीक था! मैं स्वयं आया, तो आपने स्टेशन पर जाने की जरूरत ही न समझी, मजे में सो रहे हैं।”
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