अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
मैंने उन्हें बैठ जाने को कहकर कम्पाउण्डर से कहा, "सेठ जी को बिल दी। उसमें पच्चीस रुपये फीस और पाँच रुपये गाड़ी-खर्च भी जोड़ देना।”
पचास रुपये के लगभग बिल देखते ही सेठ जी को सांप सूघ गया। वे बड़ी देर तक चश्मा लगाये बिल को घूर-घूरकर देखते रहे। फिर दवाइयाँ अंगोछे से खोलकर रख दीं और कहा, "मैं अभी रुपये लाता हूँ।”
मैंने कहा, "कहाँ से लाते हो?”
"यहीं किसीसे ले लेंगा, कोई ना-मातबर आदमी नहीं हूँ। कहो तो दस हज़ार ला दूं।”
मैंने कहा, "पर दवाई के दाम तो घर से लेकर चलना चाहिए था।”
"क्या कहूँ, बड़ी गलती हुई, लाना भूल ही गया।”
बूढ़ा खिसक जाने की हड़बड़ी में था। मैंने उससे कड़ककर कहा, "बैठो!”
सेठ सहमकर बैठ गया। उसका चेहरा कैसा-कुछ हो गया। उसे देखते ही मेरा क्रोध भी उतर गया। फिर भी मैंने उससे कहा-
"आप ऐसे प्रतिष्ठित खानदान के आदमी, स्वयं भी लाखों की सम्पति के स्वामी, हजारों रुपये माहवार कमानेवाले, बूढ़े और सद्गृहस्थ हो। आपने मुझे तुच्छ-सी बात के लिए दोपहर में हैरान किया, यद्यपि देख रहे हो कि मैं कितना थक गया हूँ, पाँच घण्टे मेरे नष्ट हुए, परेशान हुआ अलग। स्टेशन तक न आये। अब गट्ठड़ बांधकर दवा ले चले। न फीस देने की आपको जरूरत, न दवा का दाम देने की। हम लोग शायद भुस खाकर अपने परिवार को पालेंगे। लाखों रुपये घर में रखना आप ही के भाग्य में है। क्यों? आज आप चार पैसे का सौदा खरीदा हुआ बाज़ार में छोड़े जाते हो। धिक्कार है आपके धन पर, बुढ़ापे पर, कोठी-बंगले पर। जब आप धन से अपनी मर्यादा और प्रतिष्ठा ही नहीं बचा सकते तो यह और किस काम आयेगा? आपके सिवा पैसे को कौन इतना महत्त्व दे सकता है?”
बूढ़ा ढोंगी हाथ जोड़कर बोला, "बस-बस-बस, अब मुझे कायल मत करो गुरु! मैं अधमरा हो गया। धरती में गड़ गया। सौ घड़े पानी पड़ गया। मैं अभी
रुपया लाता हूँ।” इतना कहकर वह फिर खिसकने लगा।
मैंने डपटकर कहा, "ठहरो, आपकी बेगैरती में कोई शक नहीं। पर इस हिम्मत नहीं। दवाइयाँ ले जाइये। कल तक रुपये पहुँचा देना।”
बूढ़े ने चाँद छुआ। वह झटपट अंगोछे में दवाई लपेट और पैर छूकर भागा। चलती बार उसने कहा, "कल तक रुपये न आये तो बनिया न कहना-मैं आज तक बाज़ार में कभी इतना बेइज़्ज़त नहीं हुआ था।”
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