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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

सिंह-वाहिनी

संध्या का समय था। एक वृक्ष के झुरमुट में दो व्यक्ति धीरे-धीरे बातें कर रहे थे। एक युवक था। दूसरी युवती।

युवक ने कहा— "ओह जीवन का मूल्य कितना है, चलो भाग चलें, मैं इस खद्दर को भस्म किये देता हूँ।”

"और देश-प्रेम?”

"भाड़ में जाये।”

"वह वीर-भाव?”

“नष्ट हो।"

"वे बड़े-बड़े व्याख्यान?”

"बकवास थे।"

"तुम्हीं तो वे थे?”

"जब था तब था।”

"अब?”

"अब मैं और तुम। चलो, भाग चलें।”

"आज की सभा में?"

"मैं नहीं जाऊँगा।"

"क्यों?"

"मुझे सूचना मिल चुकी है कि आज मेरी गिरफ्तारी होगी।”

"तब वे हज़ारों भोले-भाले मनुष्य?”

"सब जहन्नुम में जाएँ।”

युवती चुप हुई। युवक ने कहा-

"क्या सोचती ही ?”

"कुछ नहीं। कब चलोगे? कहाँ चलोगे?”

"यह फिर सोचेंगे। आज रात की गाड़ी से पश्चिम को कहीं का भी टिकट लेकर चल दी, फिर शान्ति से सोचेंगे।”

"अच्छी बात है-मुझसे क्या कहते हो?”

"रात को 9 बजे तैयार रहना।”

"और कुछ?”

"कुछ नहीं।”

"तब जाओ।”

युवती युवक की प्रतीक्षा किये बिना चली गयी।

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