अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
मार्शल जोर से हँस दिये। हाथ की सिगरेट फेंककर नयी सिगरेट जलायी फिर कहा-
"मिर्जा, तुमसे हम खुश हैं, बहुत खुश! हाँ, ख्याल रखना, खाना खाने के वक्त सिवाय तुम्हारे और कोई आदमी वहाँ नहीं रहना चाहिए।”
"मैंने ऐसा ही बन्दोबस्त किया है सरकार, मैंने सब हिन्दुस्तानी नौकरों को छुट्टी दे दी है। मैं जानता हूँ, हुजूर आज किसी पेचीदा खास मामले पर मस्लहत करने में मशगूल हैं।”
"यह तुमने कैसे जाना?"
"हुजूर, गवर्नर-जनरल इस वक्त गुपचुप हुजूर के दस्तरखान पर खाना खाने बिला-वजह नहीं आ सकते सरकार! खासकर उस हालत में जबकि एक और मेहमान भी निहायत पोशीदा होकर तशरीफ ला रहे हैं।”
"तुम बहुत बड़ा घाघ है मिर्जा! लेकिन तुम यहाँ दुश्मनों के मुल्क में क्या करोगे? पाकिस्तान चले जाओ।”
"जी नहीं सरकार! मैं यहीं रहकर पाकिस्तान की खिदमत कर सकता हूँ।”
"वह किस तरह?”
"जिस तरह हुजूर कर रहे हैं।"
मार्शल ने भौंह सिकोड़कर मुँहजीर खानसामा की ओर देखा। खानसामा ने मुस्कराकर ज़मीन तक झुककर सलाम किया और कहा, "अगर हुजूर मेरी सिफारिश हिन्दुस्तान के आपके बाद होने वाले जनरल बूचर से कर दें तो अच्छा हो। यह गुलाम उसी तरह मेहनत और दयानतदारी से जनरल साहब की खिदमत करेगा जैसे हुजूर की करता रहा है।”
"अच्छा, अच्छा, मिजा, हम ऐसा ही करेगा। लेकिन वक्त हो गया। मैं जिस आदमी का इन्तजार कर रहा हूँ वह क्यों नहीं आया? गवर्नर जनरल ठीक साढ़े ग्यारह बजे आएँगे। उस आदमी को दस मिनट मेरे पास अकेले रहना चाहिए। सवा ग्यारह हुआ। सिर्फ पन्द्रह मिनट हैं।”
मार्शल फिर चिन्तित भाव से टहलने लगे और फिर सिगरेट का कश लगाते रहे। बुद्धिमान खानसामा कमरे के एक कोने में अदब से खड़ा हो गया। आज क्या रहस्य-चर्चा होने वाली है-इस बात की जानने के लिए उसके सम्पूर्ण रोमकूप कान बन गये थे। कुछ ही क्षणों में लियाकत अली ने कक्ष में प्रवेश किया और उसके पाँच मिनट बाद माउण्टबेटन ने। लाकहार्ट उनका स्वागत कर उन्हें खाने की मेज पर ले गये। बैठते ही माउण्टबेटन ने पूछा, "लेकिन कनिंघम का पत्र कहाँ है?”
सर लाकहार्ट ने पत्र टेबुल पर फेंककर कहा, "यह है?”
लार्ड माउण्टबेटन पत्र पढ़कर बोले, "यह पत्र आपको मिला कब?”
"आज दोपहर के समय।”
"आज 22 तारीख है, पत्र 20 तारीख को लिखा गया है। इसका मतलब यह है कि आज प्रात:काल ही काश्मीर पर हमला हो गया।”
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