अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
शहज़ादी खिलखिलाकर हँस पड़ी। उसने कहा, "तो बेहतर है...तुम अपने दिल का इजहार खुलकर करो, हम उसपर गौर करेंगी।”
"तो अर्ज करता हूँ हुजूर शहज़ादी, कि उस तुर्क मरदूद नजावत खाँ की आँखों मुझे कतई पसन्द नहीं हैं, और न वह काफिर हिन्दू राजा मुझे पसंद है जिसे आज सवारी के वक्त बीड़ाशाही इनायत करके और सवारी के साथ रहने का हक देकर सरफराज किया है। उसने तीसरा प्याला शहज़ादी की ओर बढ़ाया।
शहज़ादी ने हँसती हुई आँखों से उसकी ओर देखकर कहा, "वल्लाह, तो तुम इन दोनों नापसन्द आदमियों के साथ किस तरह पेश आना चाहते हो?”
"मैं दोनों से दो-दो हाथ करना चाहता हूँ। इश्क के मैदान में एक-दो-तीन नहीं रह सकते शहज़ादी!”
"बेहतर! तुम्हारी तजवीज़ हम पसन्द करती हैं और इस अम्र में उन दोनों बदबख्तों को ज़रूरी हुक्म देना चाहती हैं। बस, तुम अमीर नजावत खाँ को इसी वक्त हमारे हुजूर में भेज दी और खुद बइत्मीनान आराम करो!”
शहज़ादी ने मुस्कराकर दूल्हे मियाँ की ओर देखा। दूल्हा मियाँ, जो शहज़ादी की विनोद-वस्तु था और अपने को शहज़ादी के प्रेमियों में समझता था, इस बात से खुश नहीं हुआ। उसने धीरे से कहा, "क्या हुजूर शहज़ादी को एक प्याला अंगूरी शराब का पेश करूं, जिसकी कि हुजूर हद दर्जे शौकीन हैं?”
"यकीनन वह प्याला दूल्हा मियाँ तुम्हारे हाथ से हम नोश फर्मायेंगे।”
दूल्हा खुश हो गया। उसने प्याला शहज़ादी को पेश किया और शहज़ादी ने प्याला हाथ में लेकर इशारे ही से उसे कह दिया कि हुक्म की तामील हो।
विवश दूल्हा मियाँ उस आनन्ददायक सोहबत को छोड़कर उठे और जाकर अमीर नजावत खाँ की बेगम का हुक्म सुना दिया। बेगम ने धीरे-धीरे प्याला खाली किया और मसनद पर लुढ़क गयी। इस वक्त वह मौज में थी और अच्छे-अच्छे विचार उसके हृदय को आनन्दित कर रहे थे। वह सोच रही थी, नम्बर एक रुखसत हुए और नम्बर दो की आमद है।
इसी समय नजावत खाँ ने आकर शहज़ादी को कोर्निश की और दोजानू होकर शहज़ादी के सामने बैठ गया। यद्यपि यह मुगल दस्तूर और अदब के विपरीत था, लेकिन प्यार-मुहब्बत के मामलों में अदब का लिहाज चलता नहीं है।
शहज़ादी ने अमीर को पान देकर कहा, "अमीर खुशवख्त, इत्मीनान से बैठिए।”
नजावत खाँ उसी तरह दोजानू बैठा रहा। उसने पान लेकर शहज़ादी को सलाम किया और कहा, "शहज़ादी, अब कब तक में जलता रहूँ?”
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