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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

"परन्तु यह तो देखो मेजर, हिन्द सरकार ने सिर्फ हिसार, गुड़गाँव और

रोहतक जिलों ही में प्रयोग करने की आज्ञा दी है। मैंने सीमास्थित जिले माँगे थे और 90 लाख रुपया माँगा था।”

"रुपये की बात छोड़िए। रुपया और भी मिल सकता है। हमें सरकार की आर्थिक कठिनाइयों को भी तो देखना है।” "परन्तु इसका क्या किया जाए?” जनरल ने मानचित्र में लाल पेंसिल से किये हुए निशानों की ओर उगुली उठाकर कहा। मेजर उसका अभिप्राय न समझ सका। उसने कहा, ‘तो इसमें क्या हर्ज है? यही तीन जिले सही !”

"क्या तुम पागल हुए ही मेजर? उससे हमें क्या लाभ होगा? रोहतक, हिसार और गुड़गाँव के जिले कभी हमारे प्रभाव में नहीं आयेंगे। वे शुद्ध पंजाब के जिले हैं भी नहीं। न इनकी भाषा पंजाबी है, न संस्कृति। फिर ये दिल्ली को चारों ओर से घेरे हुए हैं। हिन्द सरकार दिल्ली की एक सैनिक चहारदीवारी बनवाना चाहती है। पर मेरा तो कुछ दूसरा ही उद्देश्य है।”

"वह क्या?”

"क्या तुम अभी तक समझे नहीं दोस्त?”

"मैं तो यही समझ रहा हूँ कि हमें पूर्वी पंजाब को सुरक्षित और अभय बनाने के लिए सैन्य-संगठन करना चाहिए। ये तीनों जिले पूर्वी पंजाब की पूर्वी सीमाएँ घेरे हुए हैं।”

"तो उस पर पूर्वी सीमा से क्या मुसीबत आने वाली है? वहाँ तो हिन्द सरकार की राजधानी है। खतरा तो पश्चिमी सीमा पर है।”

"जब ये जिले सुरक्षित हो जायेंगे और वहाँ हमारे सुदृढ़ सैनिक शिविर स्थापित हो जायेंगे तो आसानी से सम्पूर्ण पूर्वी पंजाब की सुरक्षा हो जायेगी।”

"मैंने सीमा प्रान्तीय जिलों में काम करना सोचा था, जो सिखों के पंजाबी इलाके हैं। मेरी योजना है, तीन लाख सिखों का सैनिक संगठन कर पंजाब की सीमा को सुदृढ़ बनाना।”

"तो मैं आपके साथ हूँ जनरल! यह कार्य कांग्रेस सरकार के भी हाथ मज़बूत करता है।”

"पर ऐसा अभी हम नहीं कर सकते, जब तक पूरे अधिकार न मिलें।”

"समझ गया! तो एक बार आप फिर दिल्ली जाकर नेहरू की समझाइए।”

"केवल नेहरू ही को नहीं, और भी एक आदमी को।”

"वह कौन?"

"सर लाकहार्ट, हिन्द की सेना का सेनापति।”

"वह क्या आपका विरोध करेगा?”

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