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गीता प्रेस, गोरखपुर >> जानकी मंगल

जानकी मंगल

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 908
आईएसबीएन :81-293-0503-8

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जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....

विवाह की तैयारी

 

गे मुनि अवध बिलोकि सुसरित नहायउ।
सतानंद सत कोटि नाम फल पायउ॥११६॥

 

[इधर] मुनि (शतानन्द)-ने अयोध्या पहुँचकर सरयूमें स्नान किया और सौ करोड़ नाम जपनेका फल पाया॥११६॥

 

नृप सुनि आगे आइ पूजि सनमानेउ।
दीन्हि लगन कहि कुसल राउ हरषानेउ॥११७॥
सुनि पुर भयउ अनंद बधाव. बजावहिं।
सजहिं सुमंगल कलस बितान बनावहिं॥११८॥

 

शतानन्दमुनि का आगमन सुनकर महाराज (दशरथ) आगे आये और पूजा करके उनका सम्मान किया। फिर मुनिने कुशल सुनाकर उन्हें लग्नपत्रिका दी। [इससे] राजा दशरथ बहुत हर्षित हुए॥११७॥ इस समाचारको सुनकर नगरमें बड़ा आनन्द हुआ और बधावे बजने लगे। सब ओर [विवाहार्थं] मंगल-कलश सजाये जाने लगे और जहाँ-तहाँ वितान (चाँदनियाँ) ताने गये ॥११८॥

 

राउ छाँड़ि सब काज साज सब साजहिं।
चलेउ बरात बनाइ पूजि गनराजहिं॥११९॥
बाजहिं ढोल निसान सगुन सुभ पाइन्हि।
सिय नैहर जनकौर नगर नियराइन्हि ॥१२०॥

 

महाराज (दशरथ) [अन्य] सब कामोंको छोड़कर बरातका सामान सजाने लगे और बरात बनाकर गणेशजीका पूजन करके चल पड़े॥११९॥ ढोल और नगारे बज रहे हैं और शुभ शकुन हो रहे हैं। इस प्रकार जानकीजीका नैहर जनकौर (जनकपुर) समीप आ गया ॥१२०॥

 

दो०-नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए।
देखत परस्पर मिलत मानत प्रेम परिपूरन भए॥
आनंदपुर कौतुक कोलाहल बनत सो बरनत कहाँ।
लै दियो तहँ जनवास सकल सुपास नित नूतन जहाँ॥१५॥

 

बरात नगरके समीप पहुँच गयी। तब सब लोग प्रसन्न होकर अगवानी लेने (स्वागत करने) गये। सब एक-दूसरेको देखते और मिलते हैं तथा आप्तकाम होकर बड़ा प्रेम मानते हैं। नगरमें बड़ा आनन्द, कौतुक (खेल) और कोलाहल (हल्ला) हो रहा है; उसका वर्णन कहाँ हो सकता है। फिर बरातको ले जाकर जहाँ सब प्रकारका नित्य-नूतन सुभीता था, वहाँ जनवासा दिया (बरातकों ठहराया गया) ॥१५॥
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