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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम

भगवन्नाम

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 914
आईएसबीएन :81-293-0777-4

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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।

जिन गुरु महाराजसे हमें नाम मिला है, यदि उनका निरादर करेंगे, तिरस्कार करेंगे तो नाम महाराज रुष्ट हो जायेंगे। कोई कहते हैं कि हमने गुरु किये पर वे ठीक नहीं निकले। ऐसी बात भी हो जाय तो मैं एक बात कहता हूँ कि आप उनको छोड़ दो भले ही, परन्तु निन्दा मत करो।

गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः।
उत्पथप्रतिपन्नस्य परित्यागो विधीयते॥

ऐसा विधान आता है। इस वास्ते गुरुको छोड़ दो और नाम-जप करो। भगवान्के नामका जप तो करो, पर गुरुकी निन्दा मत करो। जिससे कुछ भी पाया है, पारमार्थिक बातें ली हैं, जिससे लाभ हुआ है, भगवान्की तरफ रुचि हुई है, चेत हुआ है, होश हुआ है, उसकी निन्दा मत करो।

'नाम्न्यर्थवादभ्रम:'- (७) नाममें अर्थवादका भ्रम है। यह महिमा बढ़ा-चढ़ाकर कही है; इतनी महिमा थोड़ी है नामकी ! नाममात्रसे कल्याण कैसे हो जायगा ? ऐसा भ्रम न करें, क्योंकि भगवान्का नाम लेनेसे कल्याण हो जायगा। नाममें खुद भगवान् विराजमान हैं। मनुष्य नींद लेता है तो नाम लेते ही सुबोध होता है अर्थात् किसीको नींद आयी हुई है तो उसका नाम लेकर पुकारो तो वह नींदमें सुन लेगा। नींदमें सम्पूर्ण इन्द्रियाँ मनमें, मन बुद्धिमें और बुद्धि अविद्यामें लीन हुई रहती है-ऐसी जगह भी नाममें विलक्षण शक्ति है। ‘शब्दशक्तेरचिन्त्यत्वात्' शब्दमें अपार, असीम, अचिन्त्य शक्ति मानी है। नींदमें सोता हुआ जग जाय। अनादि कालसे सोया हुआ जीव सन्त-महात्माओंके वचनोंसे जग जाता है, उसको होश आ जाता है। जिस बेहोशीमें अनन्त जन्म बीत गये। लाखों-करोड़ों वर्ष बीत गये। ऐसे नींदमें सोता हुआ भी, शब्दमें इतनी अलौकिक विलक्षण शक्ति है, जिससे वह जाग्रत् हो जाय, अविद्या मिट जाय, अज्ञान मिट जाय। ऐसे उपदेशसे विचित्र हो जाय आदमी।

यह तो देखनेमें आता है। सत्संग सुननेसे आदमीमें परिवर्तन आता है। उसके भावों में महान् परिवर्तन हो जाता है। पहले उसमें क्या-क्या इच्छाएँ थीं, उसकी क्या दशा थी, किधर वृत्ति थी, क्या काम करता था ? और अब क्या करता है ? इसका पता लग जायगा। इस वास्ते शब्दमें अचिन्त्य शक्ति है।

नाममें अर्थवादकी कल्पना करना कि नामकी महिमा झूठी गा दी है, लोगोंकी रुचि करनेके लिये यह धोखा दिया है। थोड़ा ठंडे दिमागसे सोचो कि सन्त-महात्मा भी धोखा देंगे तो तुम्हारे कल्याणकी, हितकी बात कौन कहेगा ? बड़े अच्छे-अच्छे महापुरुष हुए हैं और उन्होंने कहा है—‘भैया ! भगवान्का नाम लो। असम्भव सम्भव हो जाय। लोगोंने ऐसा करके देखा है। असम्भव बात भी सम्भव हो जाती है। जो नहीं होनेवाली है वह भी हो जाती है। जिनके ऐसी बीती है उम्रमें, उन लोगोंने कहा है। ऐसी असम्भव बात सम्भव हो जाय, न होनेवाली हो जाय। इसमें क्या आश्चर्य है? क्योंकि ‘कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ ईश्वरः' ईश्वर करनेमें, न करनेमें, अन्यथा करनेमें समर्थ होता है। वह ईश्वर वशमें हो जाय अर्थात् भगवान् भगवन्नाम लेनेवालेके वशमें हो जाते हैं।

नाम महाराजसे क्या नहीं हो सकता ? ऐसा कुछ है ही नहीं, जो न हो सके अर्थात् सब कुछ हो सकता है। भगवान्का नाम लेनेसे ऐसे लाभ होता है बड़ा भारी। नामसे बड़े-बड़े असाध्य रोग मिट गये हैं, बड़े-बड़े उपद्रव मिट गये हैं, भूत-प्रेत-पिशाच आदिके उपद्रव मिट गये हैं। भगवान्का नाम लेनेवाले सन्तोंके दर्शनमात्रसे अनेक प्रेतोंका उद्धार हो गया। भगवान्का नाम लेनेवाले पुरुषोंके संगसे, उनकी कृपासे अनेक जीवोंका उद्धार हो गया है।

सज्जनो ! आप विचार करें तो यह बात प्रत्यक्ष दीखेगी कि जिन देशोंमें सन्त-महात्मा घूमते हैं, जिन गाँवोंमें, जिन प्रान्तोंमें सन्त रहते हैं। और जिन गाँवों में सन्तोंने भगवान्के नामका प्रचार किया है, वे गाँव आज विलक्षण हैं दूसरे गाँवोंसे। जिन गाँवों में सौ-दो-सौ वर्षोंसे कोई. सन्त नहीं गया है, वे गाँव ऐसे ही पड़े हैं अर्थात् वहाँके लोगोंकी भूत-प्रेत-जैसी दशा है। भगवान्का नाम लेनेवाले पुरुष जहाँ घूमे हैं, पवित्रता आ गयी, विलक्षणता आ गयी, अलौकिकता आ गयी। वे गाँव सुधर गये, घर सुधर गये, वहाँके व्यक्ति सुधर गये, उनको होश आ गया। वे स्वयं भी कहते हैं, हम मामूली थे पर भगवान्का नाम मिला, सन्त मिल गये तो हम मालामाल हो गये।

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