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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम

भगवन्नाम

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 914
आईएसबीएन :81-293-0777-4

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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।

उनसे फिर पूछा गया-‘बिना नामके क्या तुम कुछ रखते ही नहीं ? हनुमान्जीने कहा-'न, बिना नामके कैसे रखूगा ?' फिर पूछा गया-‘तो तुम शरीरको कैसे रखते हो ?' तब हनुमान्जीने नखोंसे शरीरकी त्वचाको चीर करके दिखाया। सम्पूर्ण त्वचामें जगह-जगह, रोम-रोममें राम, राम, राम, राम लिखा हुआ था- 'चीरके दिखाई त्वचा अंकित तमाम, देखी चाम राम नामकी।' तो जो नाम जपनेवाले सज्जन हैं, वे नाममय बन जाते हैं।

दक्षिणमें पण्ढरपुर है। वहाँ नामदेवजी महाराज, ज्ञानदेवजी महाराज, सोपानदेवजी आदि कई नामी सन्त हुए हैं। बड़ी विचित्र उनकी वाणी है। वहाँ दक्षिणमें चोखामेला नामका एक चमार था। विट्ठल-विट्ठल-विट्ठल-ऐसे भगवान्का नाम जपता था। पण्ढरपुरके पास ही एक मंगलबेड़ा गाँव है। उसी गाँवमें वह रहता था। वहाँ एक मकान बन रहा था। उस मकानमें चोखामेला काम कर रहा था। मजदूरी करके वह अपनी जीविका चलाता था। अचानक वह मकान गिर पड़ा। मकान बहुत बड़ा था, गिर गया और उसमें चोखामेला दब गया। उसके साथ कई आदमी दबकर मर गये। उनको उसमेंसे निकालने लगे तो निकालते-निकालते कई महीने लग गये। उन सबको निकाला तो उनकी केवल हड्डियाँ पड़ी मिलीं। अब किसकी कौन-सी हड्डियाँ हैं, इसकी पहचान नहीं हो सकती। थोड़े दिनमें तो शरीरकी पहचान भी हो जाय। अब चोखामेलाकी हड्डियोंकी पहचान कैसे हो ? तो शायद नामदेवजीने कहा हो कि भाई, उनकी हड्डियोंको कानमें लगाकर देखो। जिसमें विट्ठल-विट्ठल नामकी ध्वनि होती हो, वह हड्डी चोखामेलाकी, यह पहचान है। कितने आश्चर्यकी बात है कि मरनेके बाद भी हड्डीसे नाम निकलता है ! भगवान्का नाम लेते-लेते भक्त नाममय ही हो जाते हैं-‘चंगा राख तन, मन, प्राण, रहीये नाममें गलतान। बस, सब लोग इसमें गलतान हो जाओ, इस नाममें तल्लीन हो जाओ। तत्परतासे नाम लेनेवाले ऐसे सन्त हुए हैं।

अर्जुनके भी शरीरमेंसे भगवान्का नाम निकलता था। एक दिन अर्जुन सो रहे थे और नींदमें ही नाम-जप हो रहा था। शरीरके रोम-रोममेंसे कृष्ण-कृष्ण-कृष्ण नामका जप हो रहा था। नामको सुन करके भगवान् श्रीकृष्ण आ गये, उनकी स्त्रियाँ भी आ गयीं। नारदजी आ गये, शंकरजी आ गये, ब्रह्माजी आ गये, देवता आ गये। भगवान् शंकर नाम सुन-सुन करके नाचने लगे, नृत्य करने लगे। अर्जुनके तो बेहोशीमें—गाढ़ नींदमें भी रोम-रोमसे कृष्ण-कृष्ण निकलता है। इसमें कारण यह है कि जिसका जो इष्ट होता है, वह उसीका नाम जपता है, तो वह नाम भीतर बैठ करके रग-रगमें होने लगता है। हरिरामदासजी महाराजकी वाणीमें आता है‘रग-रग आरम्भा, भये अचम्भा छुछुम भेद भणन्दा है।' सन्तोंकी वाणी आपलोग पढ़ते ही हो। उसमें आपलोग देखो। ऐसा उनका भजन होने लगता है, क्यों ? उनकी वह लगन है। वे उसीमें ही तल्लीन हो गये। मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ नाममें लग गयीं, प्राण उसमें लग गये। शरीरमात्रमें नाम-जप होने लगा। कितने महान्, पवित्र, दिव्य उनके शरीर थे कि उनको याद करनेमात्रसे जीवका कल्याण हो जाय। वे तो नाम-रूप ही बन गये, भगवत्स्वरूप बन गये। नारदजी महाराज अपने भक्तिसूत्रमें लिखते हैं कि भगवान् और भगवान्के जनोंमें भेद नहीं होता‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्', क्योंकि वे उनके हैं, उस परमात्माके अर्पित हो गये हैं-‘यतस्तदीयाः।'

जैसे आगमें काठ रखो तो अंगार बनकर चमकने लगेगा। काला-से-काला कोयला आगमें रख दो तो वह भी चमकने लगेगा। पत्थरका टुकड़ा आगमें रख दो, वह भी चमकने लगेगा। कुछ भी कंकर, ठीकरी रख दो, वे सब-के-सब चमकने लगेंगे। यह क्या है? यह आगका प्रभाव है। जब एक भौतिक वस्तुमें भी इतनी सामर्थ्य है। कि वह काठ, पत्थर आदिको चमका दे तो फिर यह तो भगवान्का नाम है। यह भौतिक नहीं है, यह तो दिव्य है। यह नाम महाराज चेतनाको चेत करा देते हैं कि तू इधर ख्याल कर- 'नाम चेतन कू, चेत भाई नाम ते चित्त चौथे मिलाई।'

आपलोगों में भी कोई नाम लेनेवाला हो तो मैं मानता हूँ कि आपके साथ ऐसा होता होगा। आप सोते रहते हैं, गाढ़ी नींद में तो राम....ऐसी आवाज आती है, आपको जगा देती है कि अरे ! नाम लो, कैसे सोता है ? इस प्रकार नाम महाराज खुद जगाते हैं। नाम महाराज खुद चेत कराते हैं।

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