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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम

भगवन्नाम

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 914
आईएसबीएन :81-293-0777-4

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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।

सन्तोंने भगवान्से भक्ति माँगी है। अच्छे-अच्छे महात्मा पुरुषोंने भगवान्के चरणोंका प्रेम माँगा है-

जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु।
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु॥

भगवान् शंकर माँगते हैं-

बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥

तो उनके कौन-सी कमी रह गयी ? पर यह माँगना सकाम नहीं है। तीर्थ, दान आदिके जितने पुण्य हैं, उन सबका एक फल माँगे कि भगवान्के चरणों में प्रीति हो जाय। हे नाथ ! आपके चरणों में प्रेम हो जाय, आकर्षण हो जाय। भगवान् हमें प्यारे लगें, मीठे लगें। यह कामना करो। यह कामना सांसारिक नहीं है।

भगवान्का नाम लेते हुए आनन्द मनाओ, प्रसन्न हो जाओ कि मुखमें भगवान्का नाम आ गया, हम तो निहाल हो गये ! आज तो भगवान्ने विशेष कृपा कर दी, जो नाम मुखमें आ गया। नहीं तो मेरे-जैसे के लिये भगवान्का नाम कहाँ ? जिनके याद करने मात्र से मङ्गल हो जाय ऐसे जिस नामको भगवान् शंकर जपते हैं-

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अलँग आराती॥

वह नाम मिल जाय हमारेको। कलियुगी तो हम जीव और राम-नाम मिल जाय तो बस मौज हो गयी, भगवान्ने विशेष ही कृपा कर दी। ऐसी सम्मति मिल गयी, हमारेको भगवान्की याद आ गयी। भगवान्की बात सुननेको मिली है; भगवान्की चर्चा मिली है, भगवान्को नाम मिला है, भगवान्की तरफ वृत्ति हो गयी है-ऐसे समझकर खूब आनन्द मनावें, खूब खुशी मनावें, प्रसन्नता मनावें।

एक बात और विलक्षण है ! उसपर आप ध्यान दें। बहुत ही लाभकी बात है, (६) जब कभी भगवान् अचानक याद आ जायँ, भगवान्का नाम अचानक याद आ जाय, भगवान्की लीला अचानक याद आ जाय, उस समय यह समझे कि भगवान् मेरेको याद करते हैं। भगवान्ने अभी मेरेको याद किया है। नहीं तो मैंने उद्योग ही नहीं किया, फिर अचानक ही भगवान् कैसे याद आये ? ऐसा समझकर प्रसन्न हो जाओ कि मैं तो निहाल हो गया। मेरेको भगवान्ने याद कर लिया। अब और काम पीछे करेंगे। अब तो भगवान्में ही लग जाना है; क्योंकि भगवान् याद करते हैं, ऐसा मौका कहाँ पड़ा है ? ऐसे लग जाओ तो बहुत ज्यादा भक्ति है। जब अंगद रवाना हुए और उनको पहुँचाने हनुमान्जी गये तो अंगदने कहा‘बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि' याद कराते रहना रामजीको। तात्पर्य जिस समय अचानक भगवान् याद आते हैं, उस समयको खूब मूल्यवान् समझकर तत्परतासे लग जाओ। इस प्रकार छ: बातें हो गयीं।

गुप्त अकाम निरन्तर, ध्यान-सहित सानन्द॥
आदर जुत जप से तुरत, पावत परमानन्द॥

कई भाई कह देते हैं, हम तो खाली राम-राम करते हैं। ऐसा मत समझो। यह राम-नाम खाली नहीं होता है ? जिस नाम को शंकर जपते हैं, सनकादिक जपते हैं, नारदजी जपते हैं, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, संत-महात्मा जपते हैं, वह नाम मेरेको मिल गया, यह तो मेरा भाग्य ही खुल गया है। ऐसे उसका आदर करो। जहाँ कथा मिल जाय, उसका आदर करो। भगवान्के भक्त मिल जायँ, उनका आदर करो। भगवान्की लीला सुननेको मिल जाय, तो प्रसन्न हो जाओ कि यह तो भगवान्ने बड़ी कृपा कर दी। भगवान् मानो हाथ पकड़कर मेरेको अपनी तरफ खींच रहे हैं। भगवान् मेरे सिरपर हाथ रखकर कहते हैं-‘बेटा ! आ जा।' ऐसे मेरेको बुला रहे हैं। भगवान् बुला रहे हैं—इसकी यही पहचान है कि मेरेको सुननेके लिये भगवान्की कथा मिल गयी। भगवान्की चर्चा मिल गयी। भगवान्का पद मिल गया। भगवत्सम्बन्धी पुस्तक मिल गयी। भगवान्का नाम देखनेमें आ गया।

मालाके बिना अगर नाम-जप होता हो तो मालाकी जरूरत नहीं। परन्तु मालाके बिना भूल बहुत ज्यादा होती हो तो माला जरूर रखनी चाहिये। मालासे भगवान्की याद में मदद मिलती है।

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