गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम भगवन्नामस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।
माला मनसे लड़ पड़ी, तूं नहि बिसरे मोय।
बिना शस्त्रके सूरमा लड़ता देख्या न कोय ॥
बिना शस्त्रके लड़ाई किससे करें ! यह माला शस्त्र है भगवान्को याद करनेका !
भगवान्की बार-बार याद आवे, इस वास्ते भगवान्की यादके लिये मालाकी बड़ी जरूरत
है। निरन्तर जप होता है तो मालाकी कोई जरूरत नहीं, फिर भी माला फेरनी चाहिये,
माला फेरनेकी आवश्यकता है।बिना शस्त्रके सूरमा लड़ता देख्या न कोय ॥
दूसरी आवश्यकता है—जितना नियम है उतना पूरा हो जाय, उसमें कमी न रह जाय उसके लिये माला है। माला लेनेसे एक दोष भी आता है। वह यह है कि आज इतना जप पूरा हो गया, बस अब रख दो माला। ऐसा नहीं करना चाहिये। भगवद्भजनमें कभी संतोष न करे। कभी पूरा न माने। धन कमानेमें पूरा नहीं मानते। पाँच रुपये रोजाना पैदा होते हैं।
जिस दुकानमें, उस दुकानमें सुबहके समयमें पचास रुपये पैदा हो गये तो भी दिनभर दुकान खुली रखेंगे। अब दस गुणी पैदा हो गयी तो भी दुकान बंद नहीं करेंगे। परन्तु भगवान्का भजन, नियम पूरा हो जाय तो पुस्तक भी समेटकर रख देंगे, माला भी समेटकर रख देंगे; क्योंकि आज तो नित्य-नियम हो गया। यह बड़ी गलती होती है। मालासे यह गलती न हो जाय कहीं कि इतनी माला हो गयी, अब बंद करो। इसमें तो लोभ लगना चाहिये कि माला छोड़ें ही नहीं, ज्यादा-से-ज्यादा करता रहूँ।
‘कल्याण' में एक लेख आया था—एक गाँवमें रहनेवाले स्त्री-पुरुष थे। आँवार थे बिलकुल। पढ़े-लिखे नहीं थे। वे मालासे जप करते तो एक पावभर उड़दके दाने अपने पास रख लेते। एक माला पूरी होनेपर एक दाना अलग रख देते। ऐसे दाने पूरे होनेपर कहते कि मैंने पावभर भजन किया है। स्त्री कहती कि मैंने आधा सेर भजन किया, आधा सेर माला भजन किया। उनके यही संख्या थी। तो किसी तरह भगवान्का नाम जपे। अधिक-से-अधिक सेर, दो सेर भजन करो। यह भी भजन करनेका तरीका है। जब आप लग जाओगे तो तरीका समझमें आ जायगा।
जैसे सरकार इतना कानून बनाती है फिर भी सोच करके कुछ-न-कुछ रास्ता निकाल ही लेते हो। भजनकी लगन होगी तो क्या रास्ता नहीं निकलेगा। लगन होगी तो निकाल लोगे। सरकार तो कानूनों में जकड़नेकी कमी नहीं रखती; फिर भी आप उससे निकलनेकी कमी नहीं रखते। कैसे-न-कैसे निकल ही जाते हैं। तो संसारसे निकलो भाई। यह तो फँसनेकी रीति है।
भगवान्के ध्यानमें घबराहट नहीं होती, ध्यानमें तो आनन्द आता है, प्रसन्नता होती है; पर जबरदस्ती मन लगानेसे थोड़ी घबराहट होती है तो कोई हर्ज नहीं। भगवान्से कहो-'हे नाथ ! मन नहीं लगता।' कहते
ही रहो, कहते ही रहो। एक सज्जनने कहा था-कहते ही रहो ‘व्यापारीको ग्राहकके अगाड़ी और भक्तको भगवान्के अगाड़ी रोते ही रहना चाहिये कि क्या करें बिक्री नहीं होती, क्या करें पैदा नहीं होती ।' ऐसे भक्तको भगवान्के अगाड़ी ‘क्या करें, महाराज ! भजन नहीं होता है, हे नाथ ! मन नहीं लगता है। ऐसे रोते ही रहना चाहिये। ग्राहकके अगाड़ी रोनेसे बिक्री होगी या नहीं होगी, इसका पता नहीं, पर भगवान्के अगाड़ी रोनेसे काम जरूर होगा। यह रोना एकदम सार्थक है।
सच्ची लगन आपको बतायेगी कि हमारे भगवान् हैं और हम भगवान्के हैं। यह सच्चा सम्बन्ध जोड़ लें। उसीकी प्राप्ति करना हमारा खास ध्येय है, खास लक्ष्य है। यह एक बन जायगा तो दूजी बातें आ जायँगी। बिना सीखे ही याद आ जायँगी, भगवान्की कृपासे याद आ जायँगी।
दस नामापराध
सन्निन्दासति नामवैभवकथा श्रीशेशयोर्भेदधीरश्रद्धा-
श्रुतिशास्त्रदेशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ च धर्मान्तरैः
साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश ॥
श्रुतिशास्त्रदेशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ च धर्मान्तरैः
साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश ॥
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