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श्रंगार - प्रेम >> अब के बिछुड़े

अब के बिछुड़े

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

प्रकाशक : नमन प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9428
आईएसबीएन :9788181295408

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पत्र - 63


प्राण प्रिय...।

आज शहनाज मिली थी और तुम्हारे पत्र में लिखे समाचार दे रही थी। मैं भी विचलित हूँ शहनाज की तरह-यह जानकर कि तुम्हारे माता-पिता को उन्होंने जेल में रखा हुआ है। तुम्हारे वहाँ पहुँचने के बाद,उन्हें विश्वास नही है। पर जैसा कि तुमने लिखा है-उस निरंशुक राजा के समक्ष-कोई किसी की सुनवाई नहीं है। अँधाधुँध बर्बरता छाई हुई है। तुम बहुत सन्तृप्त हो-इस सारी वस्तुस्थिति से। तुम ने शायद अपने मेजर से भी अपील-करवाई है और सारे प्रमाण भी दिए है कि तुम्हीं उनके बेटे हो और इस समय युद्ध के मोर्चे पर हो। तुमने लिखा है-उनके शरीर (माता-पिता) पर पड़ा हुआ एक-एक कोड़ा रात-भर-जख्म की तरह दुःखता है और तुम्हें सोने नहीं देता। युद्ध में भी-मन के पीछे-एक व्यथा-सा सालता रहता है यह सच...युद्ध से भाग जाने को जी चाहता है। तुम अभी तक उनसे मिल भी नहीं पाये हो...।

तुम्हारी व्यथा मैं समझ पूर्णतयाः समझ सकती हूँ। माता-पिता भी तुम्हारे शरीर का ही एक माँस-पिंड होते है-जो तुम्हारे दुःख के साथ ही दुःखते और हरे होते हैं। जब एक ही शरीर के टुकड़े करके-अलग-अलग जगह पर रखे जाये-चाहे वह अलग-अलग व्यक्तित्व या देह हो...तो दुःखेगे तो सही...बल्कि तड़फेगे...सच बड़ा कचोटता है यह अंदर और बाहर...गहरे तलक...।
आशा करती हूँ तुम्हारे मेजर की ही अपील मान ले। किसी तरह...इससे तुम्हें भी कितनी राहत मिलेगी। इस समय तुम माँ-पिता के ही नहीं अपनी धरती के ऋण से भी उऋण हो रहे हो...तुम! भव्य होकर-आने वाले अपने भविष्य में भी यह ओदार्य निभाते रहो-यही मेरी कामना है।

समाचार पत्रों की काली स्याही से लिखी-मृत देहो की सुर्खियाँ-कितना कुछ रोज तोड़ जाती है। न जाने इस भरे-पूरे आकाश के कितने तारे-रोज टूटते देखती हूँ तो भकभकी-सी-टकटकी-सी आकाश पर लग जाती है। क्या ये आकाश में टंगे अनगिनत तारे किन्हीं-कोख को सलाम कर रहे हैं

न जाने किन-किन नृशंसताओं से-इन तारों की व्यथा-गाथा लिखी गई होगी...।

इन तारों को कही तुम भी-ताक रहे होगे। इसी आकाश के नीचे-इसी धरती के ऊपर-पर तुम अपनी धरती के लिये लड़ रहे हो-कहीं यह भाव एक गहरा सकून भी देता है...और एक अनबूझ व्यथा से भी भर देता है। पर तुम इतने दूर होकर भी इसी आकाश के चंदौवे तले हो...यह बहुत बड़ी सान्तवना है।

कल शहनाज पर दूर से नजर पड़ा थी। यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी की सीढ़ियाँ उतर रही थी। तुम चिंता मत करो। अपना ध्यान रखना।

- एक भावभीनी भावना


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