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श्रंगार - प्रेम >> अब के बिछुड़े

अब के बिछुड़े

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

प्रकाशक : नमन प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9428
आईएसबीएन :9788181295408

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अंदर घुसते ही कपूर साहिब ने बाघ-सरीखा झटपटा मारा-क्यों दिनेश यह कहानी-तुम्हारी वाइफ ने लिखी है...।

दिनेश ने देखा-पत्रिका का पन्ना नं 64 सामने खुला पड़ा था-जिस पर निशा की मनमोहिनी-मुस्कान से भरी तस्वीर भक-भक सौ-बॉल्ट के बल्ब-सी चमक रही थी...। दिनेश ने गले की थूक घुटकते-बेमन से ''हाँ'' में सिर हिला दिया।

इसका परिणाम जानते हो।

दिनेश को लगा यह चेतावनी नहीं-निर्णय है। जो उसे बिना बताये लिया जा चुका है। अब इस फैसले की कोई भरपाई या सुनवाई किसी कोर्ट में नहीं हो सकती हैं क्योंकि इसमें बॉस ही वकील है और बॉस ही जज...।

ऊपर वाला भी कभी-कभी कितने ओछे लोगों के हाथों में अधिकार और शक्तियाँ सौप देता है। जहाँ अन्ना (अंधा) जाट पानी-पी-पी आफरया वाली कहावत लागू होती हैं इन्हें अफसरी हजम नहीं होती। बस उसकी बदमिजाजगी जगह-जगह गंदगी की तरह फैलाते रहते हैं।

दिनेश ने सिर ऊपर उठाया और साहिब की आँखों में एक तरेर से देखा...। दिनेश कहीं बहुत आहत हो गया था। उसकी डाक्टेरट की डिग्री, आज रास्ते की भिखारिन बन कर खड़ी थी। टुच्चा बॉस-जिसकी पी-एच.डी की डिग्री का काम दूसरों ने किया और पुछल्ला इसके नाम के साथ लग गया। जो आप भी पेपर दूसरों से लिखवाता है और छपने के लिए अपने नाम से भेजता है। सौजन्यता तक नहीं निभाता।

दिनेश ने अपनी शक्ति बटोरकर स्थिति को अपने हाथों में लेने का निश्चय किया....पर उसी क्षण परिवार का ध्यान आते ही कल्पना में ढेरी हो गया। सूखे पतझड़ के पत्ते की तरह मुरझाया-चिथड़ा हुआ...।

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