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श्रंगार - प्रेम >> अब के बिछुड़े

अब के बिछुड़े

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

प्रकाशक : नमन प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9428
आईएसबीएन :9788181295408

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दिनेश उसे फिर-फिर वही दिलासा देता-कन्फर्म होने का...। तब यह सब नहीं होगा-निशा...। कन्फर्म होने पर वह ऐसा कुछ नहीं कर सकेगा। निशा एक निराश-हुंकारा भरती क्योंकि वह जानती थी कि कपूर एक नंबर का हरामी है। उसकी तो यह नीति रही है-किसी को कन्फर्म न होने देना। कभी छः महीने तो कभी चार-महीने की एक्सटेंशन दे देना और हर एक्सटेंशन पर दो-चार सौ की पार्टी डकार जाना। आठ-आठ-दस-दस बरस वह इसी तरह अलग-अलग ढंगों से अपने कर्मचारियों से खुशामदें करवाता रहता। रिश्वत लेता रहता। घर के आलतू-फालतू सवाल पूरे करवाता रहता।

मेरी बीबी को डाक्टर के पास ले जाना-जरा बीमार है। मिस कंचन-क्या आप आज उन्हें जरा शॉपिंग करवा देगी! उनका मन बहल जायेगा। आप जानती है में डिपार्टमेंट छोड़कर नहीं जा सकता।

जब समय आता तो बॉस जानबूझकर किसी न किसी से (जिस की एक्सटेंशन डयू होती) अकारण नाखुश हो जाता और कोई-न-कोई आरोप लगाकर उसकी एक्सटेंशन रद्द करवा देता। व्यक्ति इतना टूट जाता कि पुश्तैनी गुलाम और टुच्चा बनकर रह जाता।

ये सारी स्थितियाँ मिलकर धीरे-धीरे उनके चरित्रों में घूसखोरी, खुशामदी एवं लोमड़ी की सी चौकस चाल बाजियाँ भर देती। आदमी-आदमी नहीं रहता।

पिछले सप्ताह दिनेश को छः महीने की एक्शटेंशन दी गई थी। तनखाह मिलते ही बॉस ने दो सौ रूपये पार्टी के लिए रखवा लिये थे। निशा ने जब जाना-तो उसकी नस-नस फुंकार उठी। ऋतु और मनीश के लिए, उनके जन्मदिन पर छोटा-सा हवन करवाने की योजना, उसने बना रखी थी। दोनों के जन्मदिन एक ही महीने फरवरी में पड़ते थे। उस सारी योजना पर पानी फिर गया था।

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