लोगों की राय

श्रंगार - प्रेम >> अब के बिछुड़े

अब के बिछुड़े

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

प्रकाशक : नमन प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9428
आईएसबीएन :9788181295408

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

186 पाठक हैं


आज निशा बहुत खुश थी। उसकी कहानी इतनी प्रतिष्ठित पत्रिका में छिपी थी। वह कोई कथित लेखिका नहीं थी-न ही रोज-रोज वह लिखित थी। किंतु शादी के बाद-यह रोज-रोज के नये-नये टेन्शन्स और दैनिक उलझनों ने उसे बहुत
ही संवेदनशील बना दिया था। तभी वह गाह-बगाहे कुछ-न-कुछ लिख डालती थी। यह कहानी भी उसी उलझन की उपज थी।

दिनेश ने आज आने में बड़ी देर कर दी थी। वह बाल्कनी में कितनी देर से चक्कर काट रही थी। अपने आप में खुश थी ओर दूसरी ओर इस उधेड़बुन में भी थी कि कैसे वह अपने दिनेश को इतना सुदृढ़ बनाए कि इस बॉसनुमा चीज से टक्कर ले सके...। दिनेश बस झुके नहीं, टूट भले ही जाय...। उसे लगता-वह स्वयं भी कहीं अंदर ही अंदर टूट रही है।

जबसे विवाह हुआ हे दिनेश का बॉस भी जैसे उनके जीवन का एक अंग बन गया है। बॉस उनके चारों ओर छाया रहता है। उनका अपना जीवन साहिबनुमा सौर-मंडल के ग्रहों की छाया तले दब गया है।

शाम की उमस भरी उदासी हवा में बह रही थी। स्तब्ध गर्मी की शाम का पहला प्रहर था। सूरज अभी अपने जलते हुए कुंड को समेटने में लगा था। अब भी घरों के पाट नहीं खुले थे। कड़कती दोपहर के साथ आई लू की एक-एक पोग को बँद दरवाजे बाहर धकिया रहे थे। नीचे वाली कांता-बाहर आंगन के ताप को पानी की बालटियों से निगलने की कोशिश कर रही थी ताकि शाम को उसके पति के दोस्तों की बैठक जम सके...।

आज निशा सारा दिन घर को चमकाती रही थी। एक अनूठी साफ-सुथरी चमक सब चीजों पर सजकर बैठी थी। पर कहीं इस चमक के नीचे एक धुंधली चिंता की छाया भी थी जो उसे डरा रही थी। छः बज गए थे। साढ़े-पाँच तक तो दिनेश आ जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि दिनेश के बॉस को कहानी के बारे में पता चल गया हो। अगर ऐसा हुआ तो दिनेश तो सचमुच ही मारा जायेगा। दिनेश जैसे दब्बू लाचार पुरुष इस आँधी के सामने खड़ा हो पायेगा...। निशा को एक ओर दिनेश पर दया आई तो दूसरी ओर वह अपने-आप को कोसने लगी...क्यों किया मैंने ऐसा। दुनिया में सभी के साथ ऐसा-वैसा कुछ न कुछ होता रहता है। मैं ही क्यों संवेदनशील हूँ कि इन सब के साथ समझौता नहीं कर पाती। बॉस ने कहानी पढ़ ली तो बहुत बड़ा बवाल खड़ा हो सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book