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जैन साहित्य

जैनधर्म में विज्ञान

नारायण लाल कछारा

मूल्य: $ 12.95

जैन धर्म-दर्शन में विज्ञान सम्बन्धी आलेख. जैन दर्शन की वैज्ञानिकता को लेकर अर्से से चर्चाएँ होती रही हैं परन्तु....   आगे...

संगीत समयसार

आचार्य पाश्र्वनाथ

मूल्य: $ 18.95

जैनाचार्य पार्श्वदेव (13वीं शती ई.) कृत संस्कृत का यह प्राचीन ग्रन्थ भारतीय संगीतशास्त्र के इतिहास की एक अचर्चित किन्तु महत्त्वपूर्ण कड़ी है.

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मूक माती (मराठी रूपान्तर)

आचार्य विद्यासागर

मूल्य: $ 12.95

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जैन तत्त्वविद्या

मुनि प्रमाणसागर

मूल्य: $ 12.95

चार अध्यायों में विभक्त इस ग्रन्थ में प्रथक-प्रथक चार अनुयोगों का प्रतिपादन है...   आगे...

जैन शिलालेख संग्रह

हीरालाल जैन

मूल्य: $ 13.95

जैन शिलालेख संग्रह में पहली बार देवनागरी में पाँच सौ शिलालेख हिन्दी-सार के साथ संगृहित हैं.   आगे...

प्रद्युम्नचरित (संस्कृत हिन्दी)

आचार्य महासेन

मूल्य: $ 12.95

श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न का प्रसिद्ध पौराणिक चरित्र जैन परम्परा में भी उतना ही समादृत है जितना वैदिक परम्परा में.   आगे...

मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन

नेमिचन्द्र शास्त्री

मूल्य: $ 4.95

णमोकार महामन्त्र की गरिमा सर्वविदित है. इसके उच्चारण की भी महिमा है. साथ ही यह आराधना, साधना और अनुभूति का विषय है....   आगे...

पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 1

महाकवि स्वयम्भू

मूल्य: $ 4.95

राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई.   आगे...

पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 2

महाकवि स्वयम्भू

मूल्य: $ 4.95

राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई.   आगे...

पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 3

महाकवि स्वयम्भू

मूल्य: $ 4.95

राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई.   आगे...

पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 4

महाकवि स्वयम्भू

मूल्य: $ 4.95

राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई.   आगे...

 

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