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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


१५१. कई आदमी यह बात मान रखे हैं कि मेरा इनके संगसे ही उद्धार हो जायेगा, किन्तु साधन नहीं करते। उनका यह मानना युक्ति संगत नहीं है, क्योंकि जिस सत्संग की यह महिमा है कि अन्तकालमें उद्धार हो जायेगा, उसका फल यह थोड़े ही है कि साधन कम हो जाय। सत्संगसे साधन तेज ही होना चाहिये।

१५२. गीताजी अर्थ, भाव, विषयसहित याद करनेवाला पहली पास है। श्लोकोंके भावके अनुसार धारण करनेकी कोशिश करनेवाला दूसरी पास है। गीताजीके अनुसार गुणोंको धारण कर लेना अवगुणोंको निकाल देना तीसरी भूमिका है।

१५३. सत्संगमें नियमसे जानेसे इस जन्ममें उद्धार हो जायेगा।

१५४. साढ़े तीन करोड़ मंत्र निष्कामभावसे थोड़ा विश्वास और बिना श्रद्धा भी जपनेसे अन्तमें कल्याण हो सकता है। यदि किसी कारणसे कल्याण नहीं हुआ तो योगभ्रष्ट पुरुषकी गति तो अवश्य होगी।

१५५. एक अन्य धर्मके साधु आये थे। उनसे बात करनेसे यह शिक्षा मिली कि संसारमें कितनी प्रकारके मत हैं जिनमें भजनका साधन ही नहीं है। इनका उद्धार होना बहुत मुश्किल है क्योंकि जिनके गुरु भी यह मानते हैं कि जन्मना, मरना, फिर जन्मना-मरना यही गति है; फिर उद्धार किस तरह होगा। यदि आपलोग नहीं चेतेंगे और कभी यह मनुष्य शरीर मिल गया तथा ऐसे ही मतमें जन्म हो गया तो जन्म वृथा ही जायेगा। संसारमें लगभग १ ॥ अरब मनुष्य हैं जिनमें कितनोंको तो मोक्षका विषय मालूम ही नहीं है। उनकी तो पशुकी तरह योनि समझनी चाहिये। जैसे पशुके लिये मुक्तिका साधन नहीं है ऐसे ही उनके लिये भी नहीं है।

१५६. अन्त:करणके अनुसार सबका न्यारा-न्यारा सिद्धान्त है। १ ॥ अरब आदमियोंमें किसी अन्य धर्ममें जन्म हो जायगा तो बहुत मुश्किल है। थोड़े ही आदमी मोक्षके पात्र हैं। बाकी तो पशुकी तरह हैं। उनकी मुक्ति नहीं है। इसलिये बहुत जल्दी लगकर काम बनाना चाहिये।

१५७. सकामभावसे श्रद्धा कम होती है। निष्कामभावसे की हुई श्रद्धा नहीं घटती। सकामभावकी श्रद्धा तो कामना पूरी होनेसे घट जाती है या कामना पूरी नहीं होनेकी आशा हो तो घट जाती है।

१५८ अर्जुन बहुत बड़ा भक्त था। इतनी तेज भक्ति होकर भी थोड़ी कसर रहनेसे अर्जुनको इतना मोह हो गया। इसलिये मनुष्यको उचित है कि जबतक भगवत्प्राप्ति न हो, तबतक साधन खूब तेज ही करता जाय, जैसे-जड़भरत।

१५९. अर्जुन सरीखे पुरुषकी भी ऐसी स्थिति हो गयी तब हमें सोचना चाहिये कि हम किस गिनतीमें हैं।

१६०. जबतक परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो तबतक मनुष्य संसारमें अटक जाय तो कोई बड़ी बात नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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