गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
१६१. भगवान् अपने भक्तोंपर मायाका प्रयोग उनको चेत करानेके लिये करते हैं।
१६२. अर्जुन बहुत श्रेष्ठ पुरुष थे। अर्जुनको भगवान् ने कहा कि मेरे सामने तुझे यह मोह कैसे प्राप्त हो गया। मेरे सामने भी माया तुझे दबा रही है फिर मेरे बिना तेरी क्या दशा होगी।
१६३. साधनका उपाय इस तरह निकाले- २ माला सबेरे, २ माला दोपहर, २ माला रात्रिमें। इस तरह धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर अभ्यास बढ़ाये।
१६४. आजतक जो कुछ पुण्य-पाप किये हुए हैं, वे सब परमात्माके अर्पण करनेके बाद पिछले कर्म लागू नहीं पड़ते। सारे पिछले कर्म तो भगवान् के अर्पण कर दिये और आगे करे वे सब गीता अ० १२।। १० के अनुसार भगवदर्थ करे। यदि भगवदर्थ कर्म नहीं कर सकें तो जी काम करें उसे गीता अ० १२ श्लोक ११ के अनुसार भगवदर्पण करना चाहिये। भगवान् कहते हैं यदि तू मेरे अर्थ कर्म नहीं कर सकता है तो कर्म करनेके बाद मेरे अर्पण कर दे (गीता ९।२७)। इस प्रकार करनेसे तू शुभाशुभ कर्मसे छूटकर मुझे प्राप्त हो जायेगा (गीता ९। २८) । कर्म अर्पण तीन प्रकारसे कर सकते हैं-
(१) मेरेसे आजतक जो कुछ शुभ कर्म बना है, वह सब आपकी प्रेरणासे बना है, वह सब आपके अर्पण है। मुझे इसका फल बिलकुल नहीं चाहिये और जो कुछ दूषित कर्म बन गया उसे आप मुझे भुगता दें।
(२) अच्छे कर्म भगवान् के अर्पण करनेवालेको बुरे कर्म भोगने नहीं पड़ते।
(३) मेरे दूषित कर्म माफ कर दें।
प्रश्न-यदि आदमी एक बार तो सब कर्म भगवान् के अर्पण कर दिया, फिर आसक्तिके कारण उससे शास्त्र विरुद्ध होता रहे तो क्या करे।
उत्तर-फिर भी जो काम करे, वे भगवान् के अर्पण करते-करते उन कर्मोंसे आसक्ति छूट जायेगी, किन्तु कोई आदमी यह समझ ले कि पाप तो कर लें, फिर पीछे भगवान् के अर्पण कर देंगे, ऐसे कर्म बिना भोगे नष्ट नहीं होते।
१६५. धन लुटा जा रहा है लूट लेना चाहिये। लोग खूब जोरशोरसे स्वार्थ-कुआर्थमें रत हैं। परमार्थमें कम समय देते हैं। परमार्थमें थोड़ेमें ही भगवान् मिल जाते हैं।
१६६. निष्कामभावसे लोगोंको खूब काम करना चाहिये खूब सेवा करनी चाहिये।
१६७. सत्संगसे कल्याण होता है। जिसे इस बातका विश्वास होगा वह नित्य सत्संगमें जायेगा।
१६८. यदि मुझे मित्र मानकर साधन न करे तो मेरा मित्र बनने योग्य नहीं है, क्योंकि उसके उलटा परिणाम होगा यानी भजन-ध्यान नहीं बनेगा। यदि वह कहे कि मुझे तो विश्वास है कि कल्याण होगा। किस आचरण के भरोसे विश्वास है। मेरा मित्र होनेसे कल्याण होनेका उसे विश्वास है और मेरी बातको पागलकी बात समझकर उसका आदर नहीं करता। भगवान् ने गीता-(अ० १८ श्लोक ५८) में कहा है मेरे में चित्त लगानेसे संसारसमुद्रसे तर जायगा, यदि तू मेरे वचन नहीं मानेगा तो तेरा नाश हो जायेगा।
प्रश्न-जैसे प्रह्लादके दर्शन करनेवालेका उद्धार हो गया ऐसे ही आपका करनेसे उद्धार हो जायगा ऐसा मान लिया होगा।
उत्तर-मुझे भगवान् ने अभी ऐसा अधिकार नहीं दिया है यदि ऐसा अधिकार दें तो मैं नहीं लूगा, क्योंकि ऐसा अधिकार लेनेसे मैं संसारमें आलसियोंको बढ़ानेवाला हुआ।
१६९. प्रह्लादने ऐसा वरदान भगवान्से नहीं लिया कि मेरा संग करनेवालेका उद्धार हो जाय। यह वरदान तो भगवान् ने अपनी प्रसन्नतासे ही दिया था और उसके साथी राक्षस प्रहादके कहनेके अनुसार चलते थे। हिरण्यकशिपुकी इतनी कड़ी रोक होनेपर भी वे लोग छिपकर भगवन्नाम जपा करते थे।
१७०. हर वक्त चेष्टा रखे-
(प्रत्याहार) काम क्रोधादिको हटाकर जगह पर कब्जा करना है।
(धारणा) जगहमें पाया रोपना है।
(ध्यान) नींव गाड़कर दीवाल बना देनी है।
(समाधि) मकान तैयार कर लेना है यानी भगवत्प्राप्ति कर लेनी है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें