गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
|
443 पाठक हैं |
इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
ईश्वर की दयाका तत्त्व
शब्द, कान, आकाश एकजातीय पदार्थ हैं। घड़ी देखनेके लिये नेत्र, प्रकाश, मन, बुद्धि, सब एकजातीय हैं। यदि हम नेत्र बन्द कर लें तो हमारे लिये अन्धकार हो जायगा। सूर्यके प्रकाशका हम लाभ नहीं उठा सकेंगे। सूर्यकी दयाका लाभ नहीं उठा सकेंगे। ईश्वरकी महान् दया है। जो भी कुछ आकर प्राप्त होता है, उसमें ईश्वरकी दया है। स्त्री, पुत्र, तथा धन इनकी प्राप्तिमें, विनाशमें, महात्माकी प्राप्ति, पापीकी प्राप्ति, बीमारीकी प्राति, आरोग्यकी प्राप्ति सबमें ईश्वरकी दया है। ईश्वरकी दयाका तत्त्व समझना चाहिये। वे दया करके ही स्त्री, धनादि देते हैं कि उनसे फायदा उठाकर हम भगवान् की ओर तेजीसे जा सकें। हमें जल्दी बुलानेके लिया दया करके कार भेज दी। हम उस कारपर चढ़कर दूसरे रास्ते जाने लगे। धनादिका दुरुपयोग करने लगे, इसलिये भगवान् ने उनका विनाश कर दिया। पतंगे जलने लगे, देखनेवालोंने दया करके लालटेन बुझा दी। पतंगे उनकी दयाका तत्त्व न समझकर उन्हें गालियाँ देने लगे। वास्तव में तो उनपर दया ही की गयी। माँ लड़केको उसके भलेके लिये ही मारती है। बीमारीमें भी दया है, पापोंसे छुड़ा रहे हैं। भगवान् दया करके भविष्यके लिये सावधान करते हैं कि पाप न करना, पापका फल दु:ख होता है। यह ईश्वरकी दया है दण्ड नहीं देते तो हम कैसे समझते? बृहदारण्यक उपनिषद्में कहा है-बीमारीको तप समझनेसे तपका फल होता है। महात्माओंके वियोगमें भी दया है। वियोग में ही संयोगका अनुभव होता है, सत्संगकी उत्कट इच्छा जाग्रत् होती है। श्रद्धा बढ़ेगी, प्रेम बढ़ेगा, प्राप्ति होगी। दुष्टोंका संग मत करो। नवीन कर्म ईश्वरकी आज्ञानुसार करो। दुष्टका संग स्वेच्छासे तो करे ही नहीं, यदि परेच्छा या अनिच्छासे हो जाय तो यह सोचना चाहिये कि परेच्छासे दुष्टका संग होता है वह तो ईश्वर करवाते हैं। ईश्वरका विधान ही है। तुम्हारा यह भाव हो कि मैं नहीं करना चाहता तो तुम्हें हानि नहीं है। ईश्वर परीक्षा करते हैं कि इसमें घृणा-द्वेष पैदा होता है या नहीं। ऐसी परिस्थिति पैदा होनेपर हमें सावधान रहना चाहिये। ईश्वर हमें मजबूत बनानेके लिये हमारी परीक्षा ले रहे हैं। हमें कहते हैं क्रोध न करो और क्रोध करनेका सामान देते हैं। हमको सावधान करते हैं-परीक्षा लेते हैं। प्रत्येक कार्यमें ईश्वरकी दया भरी हुई है। हमें उसी प्रकार नगीं दिखती जौसे पतंगे को लालटेन बुझाने वाले की दया नहीं दिखायी देती। सूर्यकी दयाका कोई लाभ नहीं उठाये, आँख मूंद ले तो सूर्यका क्या दोष। भगवान्से हम मनसे प्रार्थना करें कि हे नाथ हमें आपका प्रेम दें। हम ईश्वरका नित्य-निरन्तर चिन्तन करने लगें, शरण हो जायँ तो योगक्षेम वहन करनेका भार उनका ही है।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
(गीता ९।२२)
जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वरको निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्कामभावसे भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करनेवाले पुरुषोंका योगक्षेम मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ।
जो ईश्वरकी दयाको समझ लेता है, उसे शान्ति मिलती है। स्त्रीपु-त्रके विनाशमें जो ईश्वरकी दया समझता है उसे शान्ति मिलेगी। नहीं समझेगा तो दु:ख होगा, अशान्ति होगी। सोढ़ सेवक प्रियतम मम सो। मम अनुसासन मानद्ध जोड़। मेरा भक्त वही है जो मेरी आज्ञानुसार काम करता है। जो आज्ञा नहीं मानता उसका तो भक्ति से इस्तीफा हो जाता है। जो आज्ञापालन करता है उसको भगवान् सब प्रकारसे मदद देते हैं। हमको तो निमित्तमात्र बनना पड़ता है। करते-कराते तो सब वे ही हैं।
|
- सत्संग की अमूल्य बातें