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वंशज

मृदुला गर्ग

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 12542
आईएसबीएन :9789353490461

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"लड़की क्या बनेगी, इसका दारोमदार उस आदमी पर होता है जो उसका संरक्षक हो।" उन्होंने कहा, "पर लड़के को डिसिप्लिन सीखना होता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप सुधीर को सख्ती और डिसिप्लिन के साथ पढ़ाएं।"

'बजा फरमाया आपने," मास्टर श्रीवास्तव ने अपनी दुबली-पतली देह पर लुटिया की तरह टिके गंजे सिर को झकाकर कहा ।

'मैं चाहता हूं, सुधीर मैथमेटिक्स में माहिर हो जाए, जिससे आगे चलकर कैरियर बनाने में कोई दिक्कत पेश न आए। आप तो जानते हैं, मैथमेटिक्स का ज्ञान कितना जरूरी है।

“जी, जज साहब, बखूबी जानता हूं," श्रीवास्तव ने फिर तमीज के साथ सिर झुका दिया।
"और मैथमेटिक्स जितना आसानी से आदमी बचपन में सीख सकता है,बड़ी उम्र में नहीं।"
"जी साहब, बिल्कुल दुरुस्त फरमाया आपने।"

मास्टर जी ने तीसरी बार सिर झुकाकर हामी भरी तो जज साहब कुछ चिढ़ गए। बोले, "आप मुझे बात पूरी करने दीजिए, बार-बार टोकिए मत ।"

मास्टर श्रीवास्तव बिना एक लफ्ज बोले टुकुर-टुकुर उनकी तरफ ताकते रहे।
जज साहब को वे पसन्द आ गए। जो आदमी हक्म की फौरन तामील करता है, वह जानता है डिसिप्लिन क्या होता है।

"ठीक है," उन्होंने कहा, "कल से पढ़ाना शुरू कर दीजिए।" "जी," मास्टर श्रीवास्तव ने विनम्रता से कहा, "एक अर्ज करूं ?" 'कहिए।"

"ऐसा है कि अगर मुझे पढ़ाने के मामले में पूरी आजादी दे दी जाए तो लड़का कहीं से कहीं निकाल दूंगा। पर साब, बहुत-से मां-बाप बीच-बीच में आप जानते हैं न साब, बीच-बीच में वे टोकते रहें तो पढ़ाई करवाना कितना मुश्किल हो जाता है।"

"मैं खुद इसके खिलाफ हूं। आप बिल्कुल आजाद हैं," जज साहब ने कहा तो उन्होंने राहत महसूस की।
'अच्छा::" जज साहब ने बर्खास्त करने वाली आवाज में कहा, और वह नमस्ते के साथ खीसें निपोरते बाहर निकल आया।

बाहर निकलते ही उसके चेहरे पर आकस्मिक परिवर्तन आ गया। ओठों पर संतुष्ट मुस्कराहट फैलने के साथ आंखों में क्षुब्ध क्रूरता झलक उठी।

"हं ! कुत्ते की दुम !"

उसने पिच्च से सड़क पर थूक दिया, "साला, बड़ा अपने को अंग्रेज की औलाद समझता है। बार-बार टोकिये मत, बात पूरी करने दीजिए। हुं ! सुन लो तेरी बात । अब देखना बच्चू कौन बड़ा है, तू या मैं।"
 
आंखें तरेर-तरेरकर बुडबुड़ाता हुआ श्रीवास्तव अपने घर की तरफ चल दिया।

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