लोगों की राय

नई पुस्तकें >> वंशज

वंशज

मृदुला गर्ग

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 12542
आईएसबीएन :9789353490461

Like this Hindi book 0



मास्टर श्रीवास्तव के व्यक्तित्व में आकर्षक शायद कुछ नहीं था। वह पतला-दुबला और गंजा तो था ही, नाटा और काला भी था। आँखें छोटी और निस्तेज थीं और उनमें अक्सर कीच जमा रहता था, जिसे बाहर निकालने के लिए वह उन्हें अजीब तरह से मिचमिचाया करता था । शीशे के सामने खड़े होने पर, निस्सन्देह, खुद अपनी शक्ल देखकर उसे छिपकली की याद आती होगी। दफ्तर में उसका व्यक्तित्व था भी. छिपकली की तरह जो दुम काट देने पर भी दीवार पर उसी चाल से रेंगती रहती है । पता नहीं, मास्टर श्रीवास्तव को सचमुच इस बात का गरूर था या नहीं कि अंग्रेज कलेक्टर की लात खाकर भी उसने मन मैला नहीं किया पर कहानी सुनाते हुए वह ऐसा ही जतलाता था। अफसरों की डांट-फटकार और लात-घूसों को मुसकरा-मुसकराकर हासिल कर लेने से वह उनका प्रिय बन गया था। कई बार मार-पीट या गाली-गलौज के ..बाद वे उसकी निरीहता पर दया कर इनाम दे दिया करते थे, जिसे वह लाचार मुसकराहट के साथ ग्रहण कर लेता था। पांच बच्चों की गृहस्थी की मांगों को काफी हद तक वह ऐसे ही पूरा करता था। यह कितनी बड़ी कुर्बानी थी, तभी समझा जा सकता है जब हम जान लें कि स्वभाव से मास्टर श्रीवास्तव बहुत क्रोधी था । गुस्से को यूं बराबर थूक के साथ घोंट पीते रहना आसान काम नहीं है। पर जब श्रीवास्तव क्लर्क के साथ मास्टर बन गया तो दिल की भड़ास निकालने का आसान तरीका उसके हाथ लग गया। मध्यवर्ग के बच्चों को पीटकर वह अफसरों से बदला लेने लगा।

पर आज-सा सुनहरा मौका पहले हाथ नहीं लगा था। अंग्रेजी अदालत के मान्य जज साहब के लड़के को पढ़ाने का संजोग नहीं बैठा था।

मास्टर श्रीवास्तव सुधीर को जज साहब के बंगले के कोने वाले कमरे में पढ़ाने लगे। कमरा उनकी बैठक से इतनी दूर पड़ता था कि वहां किसी किस्म की आवाज पहंचनी नामुमकिन थी। पढ़ाई के मामले में मास्टर जी ने कुछ नियम बना रखे थे। यानी, एक गलती करने पर नीम की छड़ी से हथेली पर दस वार करना; दो गलतियां करने पर अंगुलियों में पेंसिल फंसाकर गांठों पर दस वार करना; तीन गलतियां करने पर मुर्गा बनाकर कमर पर तख्ती बांध देना; चार गलतियां करने पर तख्ती उतार कर झुकी पीठ पर दस वार करना और चार से ऊपर गलतियां करने पर मार की गिनती छोड़ देना । मुश्किल यह थी कि पढ़ाई में सुधीर इतनी कम गलतियां करता था कि पहली सीढ़ी से आगे बढ़ने की नौबत नहीं आती थी । पर वे आसानी से हारने वाले जीव नहीं थे। दिमाग पर जोर देते ही उन्हें अनेक बहाने मिल जाते थे, जिनके भरोसे वे उस पर वार कर सकें। मसलन लिखते समय कापी पर ज्यादा क्यों झुका; उनके अन्दर आने पर खराब मुंह क्यों बनाया; जब वे सवाल समझा रहे थे तो उनकी तरफ न देखकर सामने दीवार पर क्यों ताका?
 
करीब एक महीना मास्टर श्रीवास्तव बेरोक-टोक सुधीर को पढ़ाते रहे। जब भी वे मारने को छड़ी हाथ में उठाते, अपनी सफाई देना न भूलते। हर वार के साथ कहते, "मुझे मारना-पीटना पसन्द नहीं है पर क्या करूं, जज साहब का हुक्म है।" या कहते, "जाने किस मिट्टी का लड़का है कि बाप ने खुद पिटाई करने का हुक्म दिया है।"

सुधीर सुनता, मार खाता और दस वर्ष में संचित इच्छा-शक्ति लगा कर रोने-चीखने पर काबू पा जाता । शायद उसके मन में गहरे आक्रोश की जो लपट धधक उठती, वही रोने-चीखने जैसा मामूली काम करने से रोक देती । तब मास्टर श्रीवास्तव का क्रोध सहस्र गुना बढ़ जाता । उन्हें लगता, इतनी मार-पीट करके भी वे वही छिपकलीनुमा फिटमारे इन्सान बने हुए हैं और सुधीर के अफसरी गरूर को नहीं हिला सके । उनका हाथ और कड़ा पड़ जाता, छड़ी और तेजी से सरसराती और मुंह से असंख्य गालियों की बौछार फूट पड़ती।

एक दिन जब जज साहब कचहरी से लौटकर अपने एलसेशियन कुत्ते टाइगर को लेकर घूमने निकलने वाले थे, उनके माली ने खबर दी कि छोटे साहब के पढ़ने वाले कमरे की खिड़की पर लगी पीली चम्पा पर पहली बार फूल खिल रहे हैं। यह बेल उसने दो साल पहले लगाई थी पर पता नहीं क्यों, पिछले वर्ष उस पर फूल नहीं आया था। इससे जितना दुख माली को हुआ था उतना ही जज साहब को । इस साल चम्पा की बेल ने पिछले बरस की कसर पूरी कर दी। फलों से इतना लद गई कि पत्ता देखना मुश्किल हो गया। जल्द-से-जल्द कपड़े बदलकर उसे देखने चल दिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book