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वंशज

मृदुला गर्ग

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 12542
आईएसबीएन :9789353490461

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वह सिर झुकाकर बाहर निकल गया और खड़ा-खंड़ा बीवी को कोसता रहा, जिसके कहने में आकर सुबह बासी परांठे का नाश्ता कर लिया था । कमबख्त जानती है, उसका मेदा कमजोर है, गैस की बीमारी है, फिर भी जब देखो बासी-सूखा परांठा लाकर सामने रख देती है। इतना होकर रह जाता तो, खास गम नहीं होता । मार खाने का वह आदी था। असली दुख इस बात का था कि कलेक्टर साहब के चले जाने पर झा साहब ने उसकी बदतमीजी पर लम्बा लेक्चर देकर, दस रुपया जुर्माना कर दिया था । इतना जुर्माना तो किसी हिन्दुस्तानी की टांग तोड़ने पर भी नहीं भरना पड़ता। वह बहत रोया-गिडगिडाया पर उन्होंने एक न सुनी। यही तो फर्क है अंग्रेज और हिन्दुस्तानी अफसर में। अंग्रेज मार जरूर बैठता है पर माफी मांग लेने पर खुश होकर इनाम भी देता है। रुपया देता है, लेता नहीं । साला झा की दुम ! एक वह-एक यह शुक्ला !
 
दफ्तर से निकलकर वह सीधा सुधीर को पढ़ाने आ गया था, घर नहीं गया था। डर था कि घर गया तो बीवी को मार बैठेगा । फिर वह नाराज होकर दो-चार बच्चों को पीट देगी और मातम मनाती दो दिन खाना नहीं पकाएगी।

"जवाब दीजिए," शुक्ला साहब का आदेश बेंत की तरह उसके कान पर लगा । डर हुआ कहीं गोरे साहब की तरह वे भी लात न जमा दें। वह चौंककर दो कदम पीछे हट गया । और हाथ जोड़कर घिघियाने लगा, "माफ कर दीजिए जज साहब, माफ कर दीजिए, । मैं कान पकड़ता हूं।" और सचमुच मास्टर श्रीवास्तव कान पकड़कर खड़ा हो गया।

बाहर खड़ा सुधीर जोर से हंस दिया।
 
"हाथ नीचे कीजिए । अपना तमाशा बनाने की ज़रूरत नहीं है।".जज साहब ने सख्त स्वर में कहा तो उनके हाथ आप-से-आप नीचे आ गए। सुधीर डैडी के प्रति गर्व से भर उठा।

"आगे से आप किसी बच्चे को नहीं पढ़ाएंगे। मैं और लोगों को आगाह कर दूंगा।" डैडी कह रहे थे।

यह सुन मास्टर जी घुटनों पर गिर पड़े और विलाप कर उठे, "ऐसा नं कीजिए जज साहब, मेरी रोजी-रोटी मारी जाएगी। मुझसे भूल-हो गई, बच्चे पर हाथ उठ गया।"

"जिस आदमी को गुस्से में भले-बुरे का ध्यान नहीं रहता, वह कुत्ते बिल्ली से बदतर है । आप जैसे आदमी को बच्चों की पढ़ाई का काम नहीं सौंपा जा सकता।

'मैं आगे से खयाल रखूँगा साहब, फिर कभी ऐसी गलती नहीं होगी साहब," कहता-कहता मास्टर श्रीवास्तव घुटनों के बल आगे सरकने लगा और हाथ जोड़-जोड़कर विनती करने लगा।

'गेट अप एण्ड गेट आउट," जज साहब ने थूकती हिकारत के साथ कहा। ऐसे कि पीठ पर लात सह जाने वाला मास्टर श्रीवास्तव भी उसे नहीं झेल पाया और विनती करना छोड़ बाहर निकल गया।

बाहर खड़ा सुधीर अधीर हो उठा कि अब डैडी उसे आवाज देकर बुलाएंगे, पुचकारेंगे और पूछेगे, बेटा ज्यादा चोट तो नहीं आई ? यह जानते ही कि मास्टर की मार के पीछे डंडी का हाथ नहीं था, उसका आक्रोश जाता रहा था।

श्रीवास्तव के बाहर जाने के बाद डैडी की पूकार सनाई दी. "माली, सुधीर को हमारे पास भेजो।" वह दौड़ता हुआ अन्दर आ गया और उनसे सटकर खड़े हो, आग्रह के साथ बोला, "जी डैडी?"

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