नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
अब करो समाप्त बात यह सुत,
समयानुसार मैं भूलूँगा,
जब तक वह खत्म नहीं होती,
मुझको धीरज रखना होगा॥84॥
पर पुत्र जानकर सब बातें,
था लौट पड़ा धीवर-घर को,
सारी बातें बतला उसको,
अनुरोध किया उस कन्या का॥85॥
पर धीवर सहम गया यह सुन,
कुछ बात न निकली थी मुँह से,
फिर स्थिति पर काबू रखकर,
अति विनय भाव से वह बोला-॥86॥
'हे राजन! सुनें प्रार्थना है,
बड़ी बात हैं कहे आप,
पर सरल नहीं यह कार्य सुने,
इस पर विचार करना होगा॥87॥
मेरी अपूर्व प्रतिभाशाली,
इस कन्या को सब ही चाहें,
पर यह आशा न किसी से है,
वह पूर्ण करेंगे शर्त मेरी॥88॥
पर महाराज की बात अलग,
वे तो पहले से पुत्र वान,
फिर कैसे उनको दूँ कन्या,
जीवन भर पीड़ा सहने को?॥89॥
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- अनुक्रम