नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
वैसे यदि आप करें इच्छा,
सहमति मेरी हो सकती है,
दे सकता हूँ कन्या अपनी,
पर कुछ शर्तों के साथ प्रभो॥90
बोले कुमार, हे आर्य! सुने,
मैं अपने लिए नहीं आया,
मैं पिता श्रेष्ठ की चिन्ता को,
करने समाप्त ही हूँ आया॥91॥
यदि आप उचित समझे तो प्रभु,
कन्या अपनी सौपें मुझको,
मैं लेकर इनको जाकर के-
करूँ सुपुर्द पिताश्री के॥92॥
यदि कन्या की पीड़ा का डर,
जीवन भर दुक्ख सहेगी वह,
मैं अभी वचन दे रहा आर्य,
वह कभी नहीं पीड़ित होगी॥93॥
मछुआरे ने फिर कहा उन्हें,
उसकी सन्तानों को राजन्,
सिंहासन नहीं प्राप्त होगा,
जब जेष्ठ पुत्र पहले से है॥94॥
फिर तो साधारण मानव ही-
सारे जीवन रह जाएँगे,
जो कुछ भी आप उन्हें देंगे,
उस पर ही वे निर्भर होंगे॥95॥
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- अनुक्रम