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देवव्रत

त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16642
आईएसबीएन :978-1-61301-741-8

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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य



तब कहा देवव्रत ने उससे,
हों देव, यक्ष, नक्षत्र जहाँ,
उन सब को साक्षी मान आर्य,
यह वचन आपको देता हूँ-॥96॥

जो सन्ताने होंगी उसकी,
सिंहासन-अधिकारी होंगी,
हक नहीं रहेगा कोई भी-
मेरा, सिंहासन के ऊपर॥97॥

तब वह मछुआरा फिर बोला,
मैं पुनः विनय करता राजन्,
कारण, सन्ताने होती प्रिय,
प्रत्येक पिता-माता को है॥98॥

माना कि आप बैठेंगे नहीं-
सिंहासन पर, जब तक जीवित हैं,
पर बाद आपके हे राजन्,
अधिकार जनाएगा तब सुत॥99॥

वाणी ऐसी धीवर की सुन,
कुछ क्रोधित से हो उठे कुंवर,
यदि अब भी संका करें आर्य,
मैं पुनः वायदा करता हूँ-॥100॥

हे सुर! गंधर्व, यक्ष आदिक,
बैठे हो आप जहाँ पर भी,
साक्षी मैं रखता हूँ सबको,
करने को घोषणा मेरी॥101॥

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