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देवव्रत

त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16642
आईएसबीएन :978-1-61301-741-8

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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य



जब तक मेरा जीवन होगा,
मैं नहीं करूँ तब तक विवाह,
जो सन्ताने होंगी इससे,
वह ही होंगी सत्ताधारी॥102॥

सारा जीवन रक्षा में ही उनके,
मैं अपना समय बिताऊँगा,
उनके सिंहासन के बाबत,
मैं अरि से समर सजाऊँगा॥103॥

जैसे थी हुई प्रतिज्ञा यह,
था गूंज गया ब्रह्मांड पूर्ण,
यह गगन-गिरा परिव्याप्त हुई,
चारों दिग को करके विदीर्ण॥104॥

हो गए प्रभर थे सुरगण शब,
दे रहे बधाई थे उनको,
बोले, यह भीष्म प्रतिज्ञा तो,
अब तक न हुई थी पृथ्वी पर॥105॥

हैं धन्य - धन्य हे राजकुँवर!
यह प्रण भव के ही लायक था,
अब तक न हुआ कोई भू पर,
होगा न भविष्य में आप जैसा॥106॥

वह धीवर भी आश्चर्यचकित,
सुन कठिन प्रतिज्ञा बालक की,
पड़ गया चरण पर था उनके,
भर अश्रु नयन में वह बोला-॥107॥

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