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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


हे सन्त, तुम्हारे उस बलिदान का सन्देश मैं कभी न भूलूं। न जाने अभी जीवन कितना है, और न जाने अभी कितनी बार ऐसे पहियों के नीचे होकर जाना है।'
हेन, बों वइयाज' (यात्रा शुभ हो) कहकर अपन हाथ उठा रहे थे।

और उनके उस उठे हाथ में मुझे सेंट कैथरीन का आशीषदायी हाथ भी दिखाई पड़ता था।

लन्दन में दो दिन, दो रात रहना था। लगता था कैसे कटेगा यह वक्त। अब जी यही चाहता है कि जल्दी-जल्दी जाकर जहाज़ में बैठ जाऊँ और वह चले और बम्बई आने के पहले कहीं कभी न रुके। खैरियत है, कुछ करने को था। 14 को लन्दन स्टेशन के गोदाम में जाकर चेक करना था कि जो सामान केम्ब्रिज से थामस कुक ने इकट्ठा करके भेजा है, वह ठीक पहुँच गया है कि नहीं। 15 को वह जहाज़ में लदने वाला था। उसी दिन लन्दन युनिवर्सिटी के ओरियंटल विभाग में मुझे अपनी कुछ कविताएँ रिकॉर्ड करानी र्थी, 18 को वहाँ एक हिन्दी कवि-सम्मेलन आयोजित था, मैं तो रुक नहीं सकता था, मेरी कुछ कविताएँ सुनवाने को रिकार्ड कर ली गयीं, मुझसे वादा किया गया था कि उसकी डिस्क बनवाकर भिजवा देंगे। अभी तक तो वह आयी नहीं।

रात जैसे-तैसे कट गयी।

15 को दिन को क्या करूँ? लन्दन में रहो तो कुछ घूमो-फिरो, कुछ करो-धरो।

लन्दन का क्यू गार्डन अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। देखने चला गया।

बाग अपनी पूरी जवानी पर था।

April showers
Bring May flowers.
अप्रैल की झड़ी
मई-फूलों की लड़ी!

और अप्रैल की बरसात से मई में जो फूल आये थे, वे जून के पहले पखवारे तक लहलहा रहे थे। पर हरे-हरे पौधों के बीच से झाँक रही थी तेजी, रंग-बिरंगे फूलों से अमिताभ-अजिताभ।

इंग्लैण्ड में आखिरी रात। इंग्लैण्ड में पहली रात भी इसी होटल में, घटनावश, इसी कमरे में काटी थी। तब से ठीक दो बरस, दो महीने, दो दिन की न जाने कितनी सुखद-दु:खद घड़ियों पर उँगली रखती स्मृति निद्रालोक में खो गयी है।...

सोते में जैसे सुबक-सुबक किसी के रोने की आवाज़ सुनकर जाग पड़ा हूँ।

पास के बिस्तर पर बावा नींद में रो रहा था।

उसने अपने पिता के शव को सपने में देखा था।

सुबह होने को थी।

पास रहने वाले दो भारतीय विद्यार्थियों ने आखिरी नाश्ते के लिए हमें निमन्त्रित कर रखा था।

10 बजे ट्रेन लन्दन से टिलबरी डाकयार्ड के लिए छूट गयी।

शुक्र है, लौटानी सफर शुरू हो गया है।

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