जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
पी एण्ड ओ स्ट्राथोडेर बहुत बड़ा जहाज़ था। इतने बड़े जहाज़ में मैंने पहले कभी सफर नहीं किया था। आया था हवाई जहाज़ से, डबलिन गया था स्टीमर से। बावा इंग्लैण्ड आया भी था समुद्री जहाज़ से। जहाज़ पर वह मेरा गाइड बन गया था।
स्ट्राथीडेन होगा तो कम-से-कम एक फलांग लम्बा और सौ फीट चौड़ा और ऊँचा? समुद्री सतह के ऊपर आठ डेक A, B,C, D, E, F,G, H. ऊपर के तीन डेक प्रथम श्रेणी के, शेष पाँच टूरिस्ट क्लास के। टूरिस्ट क्लास के कोई नौ सौ यात्री थे, फर्स्ट क्लास के कितने होंगे, नहीं कह सकता। फर्स्ट क्लास के लोग प्रायः टूरिस्ट डेकों पर नहीं उतरते और न टूरिस्ट क्लास के डेकों पर चढ़ते हैं। मैं तो .चढ़ता था। फर्स्ट क्लास में सबसे ऊँचे डेक पर किनारे-किनारे चारों ओर चलने का रास्ता बना था, उस पर लिखा था, 'इतने चक्कर करो तो एक मील होता है। कुछ लोगों को चलने का शौक होता है, और कुछ लोग न चलें तो उनकी तन्दुरुस्ती ठीक नहीं रहती। ऐसों की सुविधा के लिए यह रास्ता बनाया गया था। मैं दोनों में हूँ। अलस्सुबह अभी जब फर्स्ट क्लास के यात्री सोते ही रहते होंगे, मैं ऊपर जाकर तीन-चार मील का चक्कर रोज़ लगा आता था। चलंतू किसी भी प्रथम श्रेणी के यात्री से कभी मेरी भेंट न हुई। मिलता भी तो शायद ही एतराज करता। मेरी पीठ पर कोई छाप लगी थी कि मैं टूरिस्ट क्लास का यात्री हूँ!
जहाज़ में यात्रियों के लिए केबिन होते हैं, रेल के डिब्बों जैसे, एक से छह 'बर्थ' के। स्ट्राथीडेन में कोई दो सौ केबिन तो होंगे। केबिन में कपड़े टाँगने के लिए एक अलमारी होती है, कुछ दराज़ कपड़े रखने के लिए, एक वाशबेसिन, और एकाध बैठने की छोटी कुर्सियाँ-कोशिश करने पर भी बावा को और मुझे एक ही केबिन न मिला था। पर हम सिर्फ सोने के लिए अपने-अपने केबिन में जाते, बाकी वक्त साथ रहते।
जहाज़ पानी पर तैरता एक छोटा-सा नगर ही होता है। स्ट्राथीडेन पर क्या नहीं था-केबिनों के अलावा, बैठक (लाउंज), मधुशाला, भोजनालय, कॉफीखाना, धूम्रपानगृह, नाचघर, बाल भवन, धोबी-दफ्तर, नाई की दुकान, अस्पताल, बैंक, पोस्ट ऑफिस, टेनिस कोर्ट, (डेक टेनिस खेलने के लिए, जो एक तरह के रबर के चक्र से खेला जाता है), सब तो था, यहाँ तक कि नहाने, तैरने के लिए तालाब भी। जहाज़ पर काम करने वाले खलासी, बेयरे तथा अन्य कर्मचारियों के रहने की जगहें अलग थीं।
दो वक्तों का खाना, नाश्ता, चाय टिकट में शामिल होता है। इसके अलावा कुछ खाना-पीना चाहें-केक, पेस्ट्री, सिगरेट, शर्बत, शराब तो उनके दाम अलग देने पड़ते हैं, पर जहाज़ पर चीजें बहुत सस्ती मिलती हैं, सिर्फ जहाज़ पर ही खानेपीने के लिए-खरीदकर बन्दरगाह पर उतरें तो भारी चुंगी देनी पड़ती है।
हम दोनों ने ही केम्ब्रिज में दो बरस जी-तोड़ मेहनत की थी, ऊपर से तरह तरह की मुसीबतों के शिकार हुए थे। साथ ही हम दोनों यह भी जानते थे कि अपने-अपने घर पहुँचते ही हमें कई तरह की नयी और कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। क्यों न हम इस अन्तराल में विगत और अनागत दोनों को भूलकर सिर्फ वर्तमान में जियें, इससे पिछली थकान से भी हमारा निस्तार होगा और अगली चुनौतियाँ भी हमें ज़्यादा ताज़ा और तैयार पायेंगी। भूत-भविष्य की स्थूल परिस्थिति, परिवेश से असम्बद्ध, निस्सीम समुद्र की सतह पर द्वीप की तरह तैरते हुए छोटे-से जहाज़ पर असम्भव तो नहीं कि यह सम्भव हो सके। हमने अपनी सागर-यात्रा भर के लिए एक-दूसरे को इस साबर-मन्त्र से दीक्षित किया-
जो बीत गयी सो बात गयी
जो आयी नहीं छू पायी नहीं।
हमने आपस में तय किया कि हममें से कोई अगर दूसरे को कभी उदास देखे तो ज़ोर से गुदगुदा दे। और हमने मौके-बे-मौके एक-दूसरे को काफी गुदगुदाया।
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