जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
|
201 पाठक हैं |
आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
जहाज़ में नींद बड़ी अच्छी लगती है। एक तो, जहाज़ के प्रोपेलर के चलने की गरर-गरर-गर...आवाज़ निरन्तर कानों में आती रहती है। और यह और कुछ न करे किसी और विचार को दिमाग पर बैठने नहीं देती। दो-एक दिन के बाद यह जहाज़ के अनवरत मन्द-मधुर संगीत के समान कानों में गूंजने लगती है, यहाँ तक कि जब आप जहाज़ से उतरते हैं तो कई दिनों तक इसके अभाव में आपको नींद नहीं आती। दूसरे, अगर मौसम सामान्य हो तो चलते हुए जहाज़ दाहिने-बायें और धीरे-धीरे हिलता है, ऐसा लगता है कोई आपको झूले में डालकर मन्द-मन्द झुला रहा हो और आप सो जाते हैं।
कोई गाता मैं सो जाता।
संसृति के विस्तृत सागर पर
सपनों की नौका के अन्दर,
सुख-दुःख की लहरों पर उठ-गिर बहता जाता मैं सो जाता।
कोई गाता मैं सो जाता।
सुबह उठकर मैं तो ऊपर डेक पर घूमने चला जाता और बावा किसी खुले डेक पर ज़्यादा मशक्कत-तलब कसरत करता। फिर नहा-धोकर हम लोग नाश्ता करने जाते। बाद में हम लाउंज में जाकर नये-नये लोगों से परिचय करते। जहाज़ में बड़ी अनौपचारिकता का वातावरण रहता है और किसी में मिलनसारी हो तो बहुतसे मित्र बना सकता है। लोग इससे खुश होते हैं कि आप स्वयं अपना परिचय देकर दूसरों से उनका परिचय माँगें। यह तो जहाज़ में ही स्पष्ट होता है कि दुनिया में कैसे-कैसे विचित्र लोग हैं और कैसी अकल्पनीय परिस्थितियों से गुज़रते हुए अपने जीवन का मार्ग बनाते हैं। अपने आप बनाकर खाने से ऊबे हम बना-बनाया खाना डटकर खाते और दिन में कुछ देर को सो जाते। शामों को जहाज़ पर तरह-तरह के मनोरंजन का आयोजन होता है, जिनमें हर आदमी अपनी रुचि के अनुसार भाग ले सकता है। दो-चार दिन तो समुद्र का फैलाव, उठती-गिरती लहरें अच्छी लगती हैं, फिर इनसे ऊब होने लगती है। जिन पेड़ों-पत्तों-घास की ओर हम कभी ध्यान नहीं देते, उन्हीं को देखने को हम तरसने लगते हैं। जहाज़ पर इनका अभाव बहुत खलता है। कभी नोटिस करें, जहाज़ों में जो तस्वीरें लगी होती हैं वे पेड़, उद्यानों, जंगलों की होती हैं।
जिन्हें इन्सान की सोहबत पसन्द हो, जिन्हें इन्सानों में रुचि हो, जिन्हें मनुष्यों के वैविध्यपूर्ण चरित्र और वृत्ति के प्रति कौतूहल हो, उन्हें समुद्र के उबाऊ परिवेश से घबराने की ज़रूरत नहीं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज से अपनी पटरी बैठी रखने के लिए प्राय: वह एक समाज-प्रत्याशित रूप अपने ऊपर आरोपित किये रहता है। जहाज़ हर मनुष्य को इस सामाजिक दबाव और नियन्त्रण से मुक्ति देता है और वह कुछ समय के लिए निजत्व में रहने का अवसर पाता है और अपने इस निजत्व में ही दूसरों की ओर आकर्षित नहीं होते, दूसरे भी हमारी ओर नि:संकोच खिंच आते हैं। मैं भारत या आयरलैण्ड के किसी ऐसे परिवेश की कल्पना नहीं कर सकता जिसमें नोरा ऐसी लड़की हमारे उतने निकट आ सके, जितनी कि वह उस जहाज़ी यात्रा में आयी।
नोरा को पिछले वर्ष आयरलैण्ड की सौन्दर्य-प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला था, पर वह अपनी सुन्दरता के प्रति रंचमात्र सचेत न थी, साथ ही वह इतनी प्रसन्नचित्त थी कि लगता था, जैसे उसकी आन्तरिक प्रसन्नता के प्रवाह में उसका सौन्दर्य एक फूल के दोने के समान उतराता चला जा रहा हो। यदि वह यह जानकर मेरे निकट आती कि मैंने उसके देश के सबसे बड़े कवि के काव्य पर शोध किया है तो यह उसके आने की बड़ी जाहिर व्याख्या होती। नहीं, यह उसने कभी नहीं जाना। वह तो मेरे पास ऐसे आ गयी थी जैसे किसी कवि के पास उसकी कविता का विषय आ जाये और वह उसके प्रति न्याय न कर सके।
|