लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

201 पाठक हैं

आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


जब मेरे एक मित्र ने मेरे बारे में झूठी अफवाहें सरकार के कानों में भरकर उससे मिलने वाली सहायता से मुझे वंचित करा दिया, तब तेजी ने सरकार को भी चुनौती दी : 'मेरा पति, सिर्फ तेरे कुछ चाँदी के टुकड़ों के भरोसे केम्ब्रिज से डॉक्टरेट करने नहीं गया। वह तेरी सहायता के बगैर भी अपना लक्ष्य पूरा करके आयेगा।'

और इसी ज़िद पर, जब एक दूसरे 'सज्जन' ने उनकी इज्ज़त-अस्मत को चनौती देकर ऐसी स्थिति खडी कर दी कि मैं अपने काम को अधुरा छोड़कर देश लौट आऊँ, तब केवल अपने बल-बूते उनका सामना करने का निर्णय लेकर उन्होंने मुझे शपथ दिलाई कि मैं अपना काम पूरा किये बगैर देश न लौटूं। मैं आ ही जाता तो शायद वे कई वित्तीय साँकरों से बच जार्ती। पर वे उन गुमनाम नपुंसकों को, जो उनकी बेबुनियाद बदनामी से शहर को ध्वनित-प्रध्वनित कर रहे थे, और हाथ की मैल जैसी चीज़ रुपये-पैसों को-मेरे मार्ग का रोड़ा बनने का श्रेय भी न देना चाहती थीं।

मेरी योग्यता-क्षमता, मेरे श्रम-संघर्ष और अन्त में मेरी सफलता में उनका कितना दृढ़ विश्वास होगा कि उसके लिए उन्होंने अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया था,

औ' अडिग विश्वास का है श्वास चलता
पूछता-सा, डोलता तिनका नहीं है...
प्राण की बाज़ी लगाकर खेलता है
जो कभी क्या हारता वह भी जुआ है?

और

प्राण लगे हों बाज़ी पर तो पाँसे कब दो फेंके जाते?

और तेजी को अपने बल-बूते का भी कितना विश्वास था और उसकी कैसी कठिन परीक्षा हुई!

बेटों की सौगन्ध दिलाकर मुझे उन्होंने यह घटना बताई कि मैं सम्बद्ध व्यक्ति के प्रति किसी प्रकार का क्रोध-विरोध कभी न प्रकट करूँगा, सुनूँगा और भुला दूंगा। बात खत्म हो चुकी है सदा को।

घटना मैं भूल नहीं सका।-

पिछली दिसम्बर में राजन के पिता सख्त बीमार हो गये, उन्हें राजन को कुछ दिनों के लिए अपने पास बुलाना पड़ा। 'राक्षस' को उसका पता लग गया। वह इस घर की हर बात का अता-पता रखता था।

एक शाम वह अपनी मोटर में अकेला अचानक आ गया और तेजी से साथ चलने को कहा, और जब उनकी ओर से इनकार हुआ तो उसने ज़बरदस्ती उन्हें मोटर में बिठा लिया। तेजी ने भी बहुत विरोध न किया-आज यह भी देख लूँ कि यह किस बात पर उतारू हैं ? घर पर वे कोई नाटकीय स्थिति न घटने देना चाहती थीं।

वह साठ-सत्तर मील की रफ्तार से मोटर चलाता उन्हें द्रौपदी घाट के निचाट में ले गया :

तुमने मेरे पुरुषत्व का तिरस्कार किया,
मेरे घर में मुझे बदनाम किया,
आज तुम्हें आखिरी फैसला करना है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book