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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


उसने अपनी पिस्तौल निकाल ली :

आज के तुम्हारे इनकार के अर्थ होंगे कि मैं तुम्हें भी खत्म कर दूंगा और खुद को भी। तुम्हें क्या कहना है?

सीता तैं मम कृत अपमाना
कटिहँउ तव सिर कठिन कृपाना
नाहिं त सपदि मानु मम बानी
सुमुखि होति न त जीवन हानी।

सब राक्षस एक ही प्रकार की भाषा बोलते हैं।

तेजी एक कगार के सहारे खड़ी हो गयीं।
'मुझे जो कहना था, एक बार कह चुकी।
मुझे न उसे दुहराना है, न बदलना है।

तुम चलाओ गोली। अगर मेरे बच्चों और बच्चन के भाग्य में यही देखना बदा है... मेरा भाग्य तो अब समाप्त होता है।'

और राक्षस ने गोली चला दी।

तेजी निश्चल खड़ी रहीं।

निशाना उसने अलग लिया। मारना वह चाहता भी नहीं था। प्राणों की धमकी से जो सम्भव हो सकता था, उसके लिए भी प्रयत्न एक बार कर लेना चाहता था।

उसने अपनी पिस्तौल हाथ से गिरा दी।
और अपना सिर लटका लिया।
वह पूरी तरह परास्त हो चुका था।

तेजी जाड़े की कुहरा-उतारती सन्ध्या में सधे और दृढ़ कदमों से चलती, लाल कुरती आयीं और वहाँ एक रिक्शे को खाली पाकर उसमें बैठ घर वापस आ गयीं, इतनी अविचल-शान्त जैसे सिविल लाइन से शॉपिंग करके लौटी हों। प्राणों का सौदा तो करके आयी ही थीं।

तेजी कह रही थीं- देखो, अब मुझे कभी अकेली मत छोड़ना।

मैने देख लिया है कि इस समाज में अकेली नारी कितनी असमर्थ, कितनी असहाय, कितनी दयनीय है।'

तेजी ने यह घटना मुझे केम्ब्रिज में लिख भेजी होती तो?

तेजी ने मुझे बेटों की सौगन्ध न दिलाई होती तो?

मैंने केम्ब्रिज की डॉक्टरेट लेने के लिए कितना बड़ा खतरा उठाया था! कितनी भारी कीमत अदा की थी!

बे दिये कीमत यहाँ वरदान कोई
मुफ्त में पाता कहाँ है?

पर वरदान डॉक्टरेट नहीं था।
वह तो बड़ी नगण्य वस्तु थी।

वरदान था, दोनों को मिला, अपनी-अपनी कसौटी पर खरा उतरा आत्मविश्वास, जो मनुष्य की सबसे बड़ी निधि है, और एक-दूसरे के प्रति विश्वास, जो मनुष्य द्वारा मनुष्य को सौंपी सबसे बड़ी धरोहर है।

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