जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
“पाठको, यह किताब ईमानदारी के साथ लिखी गयी है। मैं आपको पहले से ही आगाह कर दूँ कि इसके लेखन में मेरा एकमात्र लक्ष्य घरेलू अथवा निजी रहा है। इसके द्वारा पर-सेवा अथवा आत्म-श्लाघा का कोई विचार मेरे मन में नहीं है। ऐसा ध्येय मेरी क्षमता से परे है। इसे मैंने अपने सम्बन्धियों तथा मित्रों के व्यक्तिगत उपयोग के लिए तैयार किया है कि जब मैं न रहूँ (और ऐसी घड़ी दूर नहीं) तब वे इन पृष्ठों से मेरे गुण-स्वभाव के कुछ चिह्न संचित कर सकें और इस प्रकार जिस रूप में उन्होंने मुझे जीवन में जाना है उससे अधिक सच्चे और सजीव रूप में वे मुझे अपनी स्मृति में रख सकें। अगर मैं दुनिया से किसी पुरस्कार का तलबगार होता तो मैं अपने-आपको और अच्छी तरह सजाता-बजाता, और अधिक ध्यान से रँग-चुंगकर उसके सामने पेश करता। मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे मेरे सरल, स्वाभाविक और साधारण स्वरूप में देख सकें-सहज, निष्प्रयास प्रस्तुत, क्योंकि मुझे अपना ही तो चित्रण करना है। मैं अपने गुण-दोष जग-जीवन के सम्मुख रखने जा रहा हूँ, पर ऐसी स्वाभाविक शैली में जो लोक-शील से मर्यादित हो। यदि मेरा जन्म उन जातियों में हुआ होता जो आज भी प्राकृतिक नियमों की मूलभूत स्वच्छन्दता का सुखद उपभोग करती हैं तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं बड़े आनन्द से अपने-आपको आपाद-मस्तक एकदम नग्न उपस्थित कर देता। इस प्रकार, पाठको मैं स्वयं अपनी पुस्तक का विषय हूँ, और मैं कोई वजह नहीं देखता कि आप अपनी फुरसत की घड़ियाँ ऐसे नगण्य और निरर्थक विषय पर सर्फ करें। इसलिए मानतेन की विदा स्वीकार कीजिए।"
-मिशेल डी मानतेन (1533-1592)
(प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक और दार्शनिक)
'The work is done,' grown old he thought, 'According to my boyish plan;
Let the fools rage, I swerved in nought, Something to perfection brought;'
But louder sang that ghost, 'What then?'
-W. B. Yeats
वृद्ध हुआ तो उसने सोचा, 'मेरा कार्य समाप्त हुआ,
मैंने अपने बालपने के सपने को साकार किया,
क्रोध-विरोध किया मूढों ने, किन्तु हटा कब पीछे मैं?
एक काम में हाथ लगाया था उसको पूर्णत्व दिया;'
कोई प्रेत पुरातन बोला और ज़ोर से
ऐसा कर डाला तो क्या?
-डब्ल्यू० बी० ईट्स
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