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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


पर जिस धनुहीं को अपनी ओर झुकाकर उन्होंने उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कल्पना की थी, वह तो शंभु-शरासन सिद्ध हुआ। 'टरइ न संभु सरःसन कैसे'...

और जो तेजी की ओर से उन्हें विरोध मिला तो वे उग्रता, उदंडता पर उतर आये।

कामात् जायते क्रोधः।

और उस क्रोध में उन्होंने जो अनर्गल बातें कहीं और जो अशोभन, असभ्य और वहशियाना हरकतें की, उनको अगर तेजी ने मुझे ज्यों-का-त्यों लिख दिया होता तो मैं पत्र पाने के बाद पहले हवाई जहाज़ से घर लौट आता और उनका...।

पर तेजी ने अपने ऊपर संयम रखा।

मूल बात का संकेत तो उन्होंने कर दिया, पर स्थिति की गम्भीरता मुझ पर न व्यक्त होने दी। फिर भी वे जानती थीं कि उनके पत्र की प्रतिक्रिया मुझ पर क्या होगी। आवेश में आकर लौट आने की मुझे उन्होंने मनाही की थी। सूचित किया था कि उन्होंने सम्बद्ध व्यक्ति को आगाह कर दिया है कि भलमंसी इसी में होगी कि वे आगे से हमारे घर पर पाँव न रखें। साथ ही राजन को तार देकर बुला रही हैं, और 'सज्जन' की पत्नी को उनके पति की सारी हरकतों से अवगत करा रही हैं।

तेजी के ये दोनों कदम कारगर सिद्ध हुए।

राजन के पिता ने उन्हें फौरन इलाहाबाद भेजा और उन्हें ताकीद की कि जब तक मैं न लौटूं, तब तक वे तेजी के पास ही रहें और उनकी और उनके बच्चों की पूरी तरह देखभाल करें। अपने किसी सम्बन्धी से मुझे उनकी जैसी आत्मीयता नहीं मिली।

'सज्जन' ने अपने घर जो नाटक देखा होगा, उसका मज़ा तो वे ही जानते होंगे।

मेरे घर तो फिर उन्होंने मुँह न दिखाया, सिवा एक बार के।

फिर भी हैरानी, परेशानी और बेचैनी के मैंने कितने दिन काटे, कितनी रातें काटीं!

और मेरा मन आश्वस्त नहीं हुआ, जब तक राजन ने इलाहाबाद पहुँचकर मुझे विश्वास नहीं दिलाया कि वहाँ सब कुछ ठीक है और मुझे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पर चिन्ता ने मुझे जल्दी न छोड़ा।

तेजी ने बार-बार मुझे पत्र लिखा-'आपने जो काम उठाया है, उसमें सफल होने को हमने बहुत कुछ दाँव पर लगा दिया है।

एक जुआ के दाँव पर हम सब दीन लगाय
लाज बचै, इज्जत रहै राम जो देयँ जिताय।

अगर इस काम में भी व्याघात पहुँचता है तो हम सब प्रकार वंचित होंगे। वह तो आपको पूरा करके ही लौटना है। मेरी इज़्ज़त को जो चुनौती मिली थी, उसका उत्तर मैंने अपनी दृढ़ता के साथ दिया है। आपका काम भी आपकी इज्जत के लिए एक चुनौती ही है। आप भी इसका उत्तर अपने श्रम-संकल्प से दें। किसी भी कारण आपको असफलता मिली तो कितनी भी व्याख्याओं से आप उसे सफलता में नहीं बदल सकेंगे। अपने जीवन-भर का अर्जित धन. मान लटाकर अगर हम दनिया की हँसी के पात्र ही बनकर रह गये तो हमसे अधिक अभागा कौन होगा!'

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