जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
उन दिनों के मानसिक तनावों में मैंने एक कविता लिखी थी-शीर्षक था... 'तेरे कूचे.से हम निकले'
ग़ालिब का शे'र याद आया था-
'निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।'
वह कविता मैंने प्रकाशित नहीं की। कर देता और उसे 'सज्जन' देखते और उनमें हया होती तो वे आत्महत्या कर लेते।
ठण्डे दिमाग से सोचने पर मैंने भी यही समझा कि मेरे लिए 'नान्यः पन्था विद्यते अयनाय'-शोध-कार्य को किसी भी हालत में पूरा करना ही है।
पर इसके बाद विदेश में एक भी दिन मैंने शान्ति और निश्चिन्तता से न बिताया। हर दिन का महत्त्व केवल इतना रह गया कि वह आकर मुझे अपने कार्यलक्ष्य की ओर बढ़ाये और जाकर मेरे और मेरे घर-परिवार के बीच समय की दूरी को कम करे।
शोध-कार्य की पूर्णता के लिए मुझे आयरलैण्ड जाना ही था।
मैंने सारी तैयारी कर ली।
हेन ने मुझे श्रीमती ईट्स तथा अन्य कई ईट्स और ईट्स-साहित्य में रुचि रखने वालों के नाम पत्र दिये, सीधे भी उन्हें पत्र लिखे। एक पूरी शाम उन्होंने मुझे देकर बताया कि मैं तुम्हें आयरलैण्ड वहाँ केवल कुछ कागद-पत्रों को देखने-परखने के लिए नहीं भेज रहा हूँ, गो यह काम भी ज़रूरी है और वहीं हो सकता है, मैं तुम्हें इसलिए भेज रहा हूँ कि वहाँ तुम घूम-फिरकर विभिन्न वर्गों के लोगों से मिलो-नगर, कस्बों, गाँवों में, शिक्षा-संस्थानों, हाट-बाज़ारों में, क्लबों-पबों में, गिरजाघरों में, मेले-ठेले में। आइरिश चरित्र की एक अपनी विशेषता है, जो उसे औरों से अलग करती है। मेरी ऐसी धारणा है कि उसे समुझे बिना कोई ईट्स को पूरी तरह नहीं समझ सकता-ईट्स टिपिकल (नमूने के?) आइरिशमैन हैं। अतार्किकता की ओर उनका झुकाव भी ईटिसयन से अधिक आइरिश है।'
पिछले दिनों जिन तनावों से मैं गुज़रा था, उनकी चर्चा मैंने हेन से न की थी, पर वे समझ गये थे कि किसी कारण मैं उखड़ा-उखड़ा-सा रहता हूँ और मेरा मन काम से उचट गया है, क्योंकि उन दिनों विशेष बल देकर वे मेरे कुशल-क्षेम के विषय में पूछा करते थे। चलते समय उन्होंने कह दिया, 'अपनी ऐसी मानसिक स्थिति में तुम्हें आयरलैण्ड की यात्रा सुखद होगी, आयरलैण्ड बड़ा सुन्दर देश है, उसके निवासी और सुन्दर हैं, पुरुषों से अधिक स्त्रियाँ, विशेषकर उसकी 'कोलीन्स'*।' फिर उन्होंने हँसकर जोड़ दिया, 'देखो, किसी कोलीन' के सम्मोहन में न पड़ जाना। वे बहुत आकर्षक होती हैं। मुझे आशा है, तुम अपनी यात्रा से तरोताज़ा होकर लौटोगे, साथ ही अपने काम के लिए बहुत-सा उपयोगी मसाला भी इकट्ठा करके।'
*Colleens-आयरलैण्ड की वारांगनाएँ
इंग्लैण्ड-निवासियों को आयरलैण्ड जाने के लिए आइरिश वीज़ा की ज़रूरत नहीं होती, यह छूट इंग्लैण्ड से सम्बद्ध और कई देशों के लिए है, जिनमें भारत भी सम्मिलित है। पर ट्रेवल एजेन्ट के द्वारा ट्रेवलर्स आइडेंटिटी कार्ड बनवा लेना अच्छा रहता है। जहाँ तक आइरिश सरकार का सम्बन्ध है, आयरलैण्ड में प्रवेश करने पर चुंगी के दफ्तर में जो अता-पता माँगा जाता है, उतना ही पर्याप्त होता है। मेरे पास अपना पासपोर्ट था ही, मैंने थामस कुक से समुद्री मार्ग से आयरलैण्ड जाने का टिकट खरीद लिया।
उन दिनों लिवरपूल से रात को एक स्टीमर छूटता था जो सुबह-सुबह डबलिन पहुँचा देता था। थामस कुक से ही मैंने डबलिन में प्रथम सप्ताह रहने का प्रबन्ध भी पक्का करा लिया।
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