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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


उसने कटु अनुभवों की शराब छक कर पी है। वह संजीदा है, पर मनहूस नहीं। उसने शायद अपनी गम्भीरता की अतिशयता से राहत पाने के लिए ही एक Sense of Humour (सेंस आफ ह्यूमर), एक विनोद-वृत्ति, एक व्यंग्य-वृत्ति विकसित की है। वह अपनी चुटीली बातों से, बिना खुद हँसे, आपको हँसा सकता है। वह बोलता है, प्रायः अधिक ही, तो अपने को हल्का करने के लिए। वह भीतर कहीं भारी है।

डबलिन पहुँचकर सबसे पहले मैंने श्रीमती ईट्स से सम्पर्क किया, फोन से। मेरे बारे में मि० हेन ने उन्हें अलग से पत्र लिख दिया था, जो उन्हें मिल चुका था। उन्होंने मुझसे कहा कि 'आजकल 'अन्तर्राष्ट्रीय अश्व प्रदर्शनी सप्ताह' चल रहा है। आप फोनिक्स पार्क आ जायें और प्रदर्शनी में कुआला प्रेस स्टाल पूछ लें। मैं दिनभर वहीं रहती हूँ।'

कुआला प्रेस ईट्स ने अपनी दो विधवा बहिनों के भरण-पोषण के लिए अपने मकान के निचले हिस्से में खुलवा दिया था। वे ईट्स की छोटी-मोटी पुस्तकों का प्रथम संस्करण सीमित संख्या में हाथ-बने कागज़ पर स्वयं अपने हाथों से ट्रैडिल मशीन चलाकर छापती थीं, प्रतियों का दाम अधिक होता था, पर उनकी बड़ी माँग रहती थी, कभी-कभी ईट्स प्रतियों पर अपने हस्ताक्षर भी कर देते थे। उनके दूसरे संस्करण नहीं छप सकते थे। ईट्स के देहावसान के बाद कुआला प्रेस आर्ट-प्रिंटर हो गया था। ईटस की पंक्तियाँ. अक्सर उन पर चित्र बनवाकर. मोटे कागजों पर छपती थीं, जिन्हें लोग अपने ड्राइंग रूमों में टाँगने के लिए खरीदते थे। पंक्तियों पर हाथ-बने चित्र भी बेचे जाते थे। कुछ चित्र ईट्स की बेटी के बनाये होते थे, वह चित्रकार थी, चित्रकारी ईट्स परिवार में पुश्तैनी थी। ईट्स के पिता जान ईट्स चित्रकार थे, छोटे भाई जैक ईट्स भी, ईट्स ने स्वयं कई वर्षों तक चित्रकारी की नियमित शिक्षा ली थी और इसका प्रभाव उनकी कविताओं पर स्पष्ट है।

डबलिन का हार्स-शो एक तरह से नागरिक मेले का अवसर प्रदान करता है और आयरलैण्ड की कला-कारीगरी-व्यवसाय की बहुत-सी चीजें वहाँ बिकने को आती हैं। कुआला प्रेस स्टाल भी इसी ध्येय से लगाया गया था। वहीं मैं पहले-पहले मिसेज़ ईट्स से मिला, जो अपनी ननदों की सहायता करने के लिए स्टाल पर बैठती थीं। स्टाल छोटा था, सहायता की कोई विशेष आवश्यकता न थी, पर मुझे उनके चेहरे से लगा कि वे अपने पति के प्रेमियों, प्रशंसकों को देखकर हर्षित होती थीं, जो उनकी पंक्तियों से सज्जित चित्रों को खरीदने आते थे। श्रीमती ईट्स-सी पतिपरायणता मैंने पश्चिम में शायद ही कोई दूसरी देखी हो।

अश्व-प्रदर्शनी की जो छाप मेरे दु:ख-मँजे मन पर पड़ी. वह मेरे अगले तीन जन्मों तक भी मिटाई न जा सकेगी। अमृतोद्भव उच्चैःश्रवा के वंशजों का ऐसा चुस्त, दुरुस्त, स्वस्थ, सुन्दर, जीवन्त स्वरूप न मैंने पहले कभी देखा था और न बाद को ही देखा। कोलीनों के सम्मोहन में तो मैं न पड़ा, पर घोड़ों के सम्मोहन से मैं अपनी रक्षा न कर सका। वे मुझे पीठ पर चढ़ा साहित्य-क्षेत्र के न जाने कितने घोड़ों से मेरा परिचय करा लाये। ईट्स ने तो एक बादल से दूसरे बादल पर छलाँग मारने वाले घोड़ों से लेकर ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर गाड़ी खींचने वाले घोड़ों तक का ज़िक्र किया है। अपने ऐपीटाफ में जिस 'हार्समैन' को उन्होंने सम्बोधित किया है उसका घोड़ा कितना थका है!-'न' होते घोड़े पर 'हार्समैन' का दीर्घ स्वर-भारवह तो बीतती उम्र का प्रतीक है-घुड़सवार जीवात्मा। याद आया, ग़ालिब ने भी घोड़े को उम्र का प्रतीक माना है, पर वह किस तेज़ी से उम्र को काट रहा है, और घुड़सवार का कोई बस उस पर नहीं चलता,

रौ में है उम्रे-अस्प कहाँ देखिये थमे,
नै बाग हाथ में है न पा है रकाब पर।

शेक्सपियर के घोड़ों पर तो एक पुस्तक लिखी जा सकती है। एन्टनी के प्रेम में पड़ी क्लियोपैट्रा उस घोड़े से ईर्ष्या करती है, जिसे अपनी पृथुल जाँघों से दबाकर एन्टनी दौड़ाता है। 'मैकबेथ' में डंकन की हत्या की भीषण रात को घोड़े एक-दूसरे को खाने को उद्यत हो उठते हैं-कैसा भयावना दृश्य है!

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