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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


औ' यह जितना अद्भुत है, उतना ही सच हैडंकन के घोड़े मस्ताने, तेज़ तुखारी, ताज़ी तड़पे, तोड़ अस्तबल बाहर झपटे, बँधे न बाँधे; जैसे वे विरुद्ध मानव के युद्ध छेड़ने को उद्यत हों और यह सुना गया, उन्होंने एक दूसरे को खा डाला। और तुलसी के

'सावॅकरन' हयों को कोई कैसे भूले
जे जल चलहिं थलहिं की नाईं
टाप न बूड़ बेग अधिकाई।

ईट्स के घोड़े बादलों पर चलते हैं, तुलसी के जलाशयों पर। किस पर किस को तरजीह दें? और

जेहि बर बाजि राम असवारा,
तेहि सारदउ न बरनै पारा।

क्लियोपैट्रा ने तो एन्टनी के घोड़े के प्रति अपनी ईर्ष्या व्यक्त की, शारदा से इतना भी न हुआ। चुप ही हो गयीं। और राम को वन में छोड़कर सुमंत के रथ के घोड़ों की मूक-मुद्रा व्यक्त विरह-वेदना किसे न विचलित कर देगी :

चरफराहिं मग चलहिं न घोरे,
बन मृग मनहु आनि रथ जोरे।
अढुकि परहिं फिरि हेरहिं पीछे,
राम वियोगि विकल दुख तीछे।

जो कह रामु लखनु वैदेही,
हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेही।
बाजि विरह गति कहि किमि जाती,
बिनु मनि फनिक विकल जेहिं भाँती।

कभी मैंने 'मानस' के पशु-पक्षियों पर एक निबन्ध लिखना चाहा था। शायद अब भी कभी लिखू। कोई और भी इस विषय पर लिख सकता है।

अश्व-प्रदर्शनी से अश्व काव्य-प्रतीक रूप में शायद मेरे दिमाग में भी पैठा। इससे पहले घोड़े को प्रतीक-रूप में अपनी कविता में सम्भवत: मैं कभी नहीं लाया था। इसके बाद तो कई बार लाया हूँ। 'आरती और अंगारे' से 'जाल समेटा' तक अगर मेरे घोड़ों में कोई दम-खम, कोई सजीवता हो तो मैं चाहूँगा उसका श्रेय आप डबलिन के हार्स शो को दें।

सुन्दर-स्वस्थ घोड़ों को देखकर चमकती आयरी आँखों से मुझे यह समझने में देर न लगी कि हिन्दुओं ने जो भक्ति गाय को दी है, अंग्रेज़ों ने जो प्रेम कुत्तों को, वह आयरवासियों ने घोड़ों को दिया है। पशु-प्रेम प्रकृति से जोड़ने वाली ऐसी कड़ी है, जिसकी मशीनी युग में उपेक्षा कर मनुष्य अपनी बहुत बड़ी हानि करेगा। खैर, हम तो पशुपतिनाथ के उपासक ही हैं।

अश्व-प्रदर्शनी जब तक चलती रही, मैं बराबर वहाँ जाता रहा। वहाँ मुझे आयरी जनता का एक प्रतिनिधि क्रास-सेक्शन (लघु संस्करण?) देखने को मिला और उससे आयरी चरित्र को समझने में मुझे बड़ी सहायता मिली। बीच-बीच में मैं कुआला प्रेस के स्टाल पर जाकर बैठता और श्रीमती ईट्स से बात करता।

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