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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


पहले उन्हें मुझसे बात करने में कुछ हिचक थी। कारण यह था कि एक साक्षात्कार करने वाले से उन्हें बड़ा कटु अनुभव हुआ था। वह अमरीकी था। उसने ईट्स के जादू-टोने में विश्वास और उसके कुछ प्रयोगों के विषय में मिसेज़ ईट्स से कुछ गोपनीय बातें कहलवा ली जो एक छिपे टेपरिकार्डर पर रिकार्ड होती रहीं। अमरीका जाकर उसने Yeats and Black Magic (ईट्स और जादू-टोना), W. B. Yeats the Magician (जादूगर डब्ल्यू० बी० ईट्स) शीर्षक से कई लेख लिखे। अमरीका में ऐसे सनसनीखेज लेखों के लिए बड़ा बाज़ार है। मैंने मिसेज़ ईट्स को यकीन दिलाया कि मैं कोई ऐसी धोखेबाज़ी करने नहीं आया हूँ, मेरा ध्येय विशुद्ध साहित्यिक है। मुझे प्रसन्नता हुई कि मैं जल्दी ही उनका विश्वास प्राप्त कर सका और उनसे मुझे जो सूचनाएँ मिली, जो सहयोग मिला, वह मेरे शोध के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ।

मुझे दूसरे-तीसरे दिन ही पता चल गया कि थामस कक ने मेरे ठहरने की जो जगह तय की है, वह ईट्स के मकान से बहुत दूर है। मिसेज़ ईट्स ने मुझे एक 'डिग' का पता दिया, जो उनके यहाँ से नज़दीक थी और सस्ती भी थी।

मैं सुबह नाश्ता लेकर उनके यहाँ पहुँच जाता और दिन-भर ईट्स के अध्ययन कक्ष में बैठकर काम करता, लंच पास के एक रेस्टरों में कर आता।

ईट्स को दिवंगत हुए लगभग पन्द्रह वर्ष बीत चुके थे, पर ईट्स की कोई पुस्तक, कोई पाण्डुलिपि, कोई चीज़ उन्होंने इधर-उधर न होने दी थी; बल्कि ईट्स के जीवनकाल में जो चीजें इखरी-बिखरी थीं, उन्हें भी उन्होंने संभालकर रख दिया था। यह काम बिना अपने पति के प्रति अनन्य प्रेम और उनके कार्य के प्रति अदम्य आस्था के सम्भव नहीं था।

ईट्स का मकान काफी बड़ा था-उसके चारों ओर बहुत-सी खुली ज़मीन। उनका अध्ययन-कक्ष एक हॉल-जैसा था-मकान का सबसे बड़ा कमरा, चारों ओर ऊँची शीशेदार अलमारियाँ किताबों से भरी, एक सिरे पर काम करने की मेज़ और कुर्सी, पीछे आतशदान, कारनिस पर कलाकृतियों के कुछ नमूने-एक चीनी कृति थी, जिससे प्रेरित होकर ईट्स ने अपनी Lapiz Lazuli (लापीज़ लाजूलीनील मणि) कविता लिखी थी, दीवारों पर ब्लेक के कुछ चित्र, जिनकी कविता के भी ईट्स बड़े प्रेमी थे, और जिन पर अपने एक मित्र के सहयोग से उन्होंने एक बड़ी प्रामाणिक पुस्तक लिखी थी। मिसेज़ ईट्स ने पहले ही दिन जैसे किसी पुरानी यादगार को सहलाते हुए, और उसे सुरक्षित रखने के अपने प्रयत्नों पर कुछ गर्व-सा करते हुए, मुझसे कहा था, 'विली का अध्ययन-कक्ष'-वे अपने पति के लिए 'विलियम' का संक्षिप्त रूप 'विली' नाम का प्रयोग करती थीं-'अब भी वैसा ही है, जैसा वे छोड़कर गये थे'...

ईट्स के पुस्तकालय की पुस्तकों का नाम देखना भी अपने आप में एक शिक्षा थी। उसमें एक अलमारी में मैडम ब्लावाट्स्की की कृतियों को देखकर मैं बड़ा आश्वस्त हुआ। मेरी स्थापना थी कि ईट्स ने अपने दर्शन के मूल सिद्धान्त मैडम ब्लावाट्स्की से लिये थे, यहाँ एक सबूत था। पुस्तकों पर लगे निशानों ने कुछ और संकेत दिये।

ईट्स ने अपने हाथ से जिस कागज़ पर कुछ भी लिखा था, श्रीमती ईट्स ने उसे नष्ट नहीं होने दिया था। ऐसे पन्नों की संख्या सत्तर हज़ार से ऊपर थी, और कमाल तो यह था कि इन सबकी श्रीमती ईट्स ने विषय-काल के क्रम में तालिका बना रखी थी।

मुझे ईट्स का सम्बन्ध थियोसोफिकल सोसायटी से जताने वाले कागद-पत्रों की आवश्यकता थी। श्रीमती ईट्स ने उन्हें मेरे लिए निकाला।

डबलिन-लन्दन थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्यता के समय ईट्स ने कुछ पैम्पलेट लिखे थे; ये छपे भी थे; इनकी प्रतियाँ केवल श्रीमती ईट्स के पास थीं। ये D.E.D.I. (डी० ई० डी० आई०) के नाम से छपी थीं। सदस्यों को इस तरह का एक गप्त नाम दिया जाता था। यह नाम ईटस को मिला था। यह लैटिन में 'डेविल एस्ट डियस इनवर्सस' का सांकेतिक रूप है-शैतान है खुदा का उलटा। इस शीर्षक से मैडम ब्लावाट्स्की की पुस्तक The Secret Doctrine (दि सीक्रेट डाक्ट्रिन) का एक अध्याय ही है। मैंने इस पैम्पलेट से कुछ उद्धरण अपनी थीसिस में दिये हैं।

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