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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


A Vision, ईट्स की दर्शन-पुस्तक के सम्बन्ध में मेरी जिज्ञासा होने पर मिसेज़ ईट्स ने मुझे उसके सात ड्राफ्ट दिखाये। उन दिनों मिसेज़ ईट्स ने ईट्स की टाइपिस्ट का काम किया। प्रथम ड्राफ्ट ईट्स की हस्तलिपि में है। उसे मिसेज़ ईट्स ने टाइप किया। हर बार ईट्स उसमें कुछ काट-छाँट कर देते और मिसेज़ ईट्स फिर-फिर टाइप करके नया ड्राफ्ट उनके सामने प्रस्तुत करी। इन ड्राफ्टों के सूक्ष्म अध्ययन से दो बातें स्पष्ट हुईं-

1. पहले और अन्तिम ड्राफ्ट में लगभग बारह वर्ष का अन्तर है।

2. अन्तिम ड्राफ्ट में जिन विश्वविश्रुत दार्शनिकों के नाम जोड़े गये हैं, उनकी प्रथम ड्राफ्ट में कोई चर्चा नहीं है।

इससे यह परिणाम सहज ही निकाला जा सकता है कि उनके दर्शन का उत्स कहीं और है। बाद के दार्शनिकों के अध्ययन से क्रमशः उनका अधिकाधिक समर्थन लिया गया है। पर एक समस्या बनी की बनी रह गयी। A Vision का प्रथम ड्राफ्ट किस आधार पर तैयार किया गया? ईट्स ने ऐसा संकेत दिया था कि वह मिसेज़ ईट्स की 'आटोमेटिक स्क्रिप्ट के आधार पर तैयार किया गया। मैंने श्रीमती ईट्स से जानना चाहा कि क्या 'आटोमेटिक स्क्रिप्ट' सुरक्षित है और क्या वे मुझे दिखा सकती हैं ? श्रीमती ईट्स ने मुझसे कहा कि आटोमेटिक स्क्रिप्ट है, परन्तु वे अभी उसे दिखाने के लिए तैयार नहीं हैं। यहीं बात खत्म हो गयी।

डबलिन में मैं मि० जे० एम० होन से भी मिला। वे ईट्स के Official Biographer (अधिकार प्राप्त जीवनीकार) बनाये गये थे और उन्होंने 1942 में ईट्स का सम्यक् जीवन-चरित प्रकाशित किया था। ईट्स के आदेशानुसार उनके सारे कागद-पत्र होन के देखने-परखने के लिए उपलब्ध कराये जाने को थे-निजी और गोपनीय सभी प्रकार के। उन्होंने मुझसे बताया कि श्रीमती ईट्स ने उनसे कुछ भी नहीं छिपाया, पर जब आटोमेटिक स्क्रिप्ट की बात उठी तो उन्होंने अपना मुँह बन्द कर लिया। जहाँ होन को भी सफलता न मिली थी. वहाँ मेरी दाल क्या गलती ! मुझे कुछ निराशा हुई, पर मिसेज़ ईट्स के प्रति किसी प्रकार की शिकायत का भाव मेरे मन में नहीं उठा। प्राप्त तथ्यों से जो परिणाम मैंने निकाले, वे मेरी थीसिस में हैं, यहाँ उनका विस्तार सामान्य पाठक के लिए शायद ही रुचिकर हो।

फिर भी मिसेज़ ईट्स ने मुझे बहुत सहयोग दिया और मेरे प्रति बड़ी सद्भावना दिखायी।

वे बड़ी ममतामयी थीं और अपने पति के जीवन और काव्य में रुचि लेने वालों को बड़े स्नेह और समादर से देखती थी। मैंने उनके घर में बैठकर लगभग एक मास काम किया। मुझे याद आता है, कभी लंच के समय वर्षा हो रही होती तो वे मुझे बाहर न जाने देर्ती कही. 'मुझे अपने लिए तो खाना बनाना ही है. तम्हारे लिए भी कुछ बना दूंगी-तुम खाते ही क्या हो, अण्डा, टोस्ट, उबली हुई सब्जियाँ, फल! शाकाहारी जो ठहरे।' वे मुझे अपनी ही टेबल पर बिठाकर खाना खिलाती और अपने और मेरे घर-परिवार के विषय में बातें करतीं। लड़का उनका विवाहित था और उसके अपने बाल-बच्चे थे, अलग रहते थे, इतवार-इतवार मिलने आते थे। आज़ादी मिलने के बाद आयर की अपनी राष्ट्रभाषा गेलिक के प्रचार पर जोर दिया जा रहा था, स्कूलों में वह अनिवार्य कर दी गयी थी। मिसेज़ ईट्स को शिकायत थी, 'मेरे पोते-पोतियाँ जो भाषा बोलते हैं, वह मैं नहीं समझ पाती। पता नहीं, भविष्य में वे अपने दादा की लिखी हुई चीजें पढ़ पायेंगे या नहीं।' उनकी लड़की किसी स्कूल में पेंटिंग की शिक्षा देती थी, सुबह ही घर से निकल जाती थी और शाम को लौटती थी। बेटा उनका आइरिश पार्लियामेन्ट में सेनेटर था, ईट्स भी अपने अन्तिम वर्षों में थे। विचित्र है कि बेटे को अपने पिता के साहित्य में कोई रुचि नहीं थी, कुछ थी तो बेटी को। मिसेज़ ईट्स अक्सर चिन्ता व्यक्त करती, 'विली की चीज़ों का, जो मैंने सालों से जोगा कर रखी हैं, पता नहीं, मेरे बाद क्या होगा!'

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