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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


दार्शनिक बार्कले के नाम से सब पढ़े-लिखे लोग परिचित हैं। उनका दर्शन पाश्चात्य-दर्शन के इतिहास में प्रगति का एक प्रमुख सोपान है। उचित ही है कि उनकी स्मृति में उनकी टेबिल ट्रिनिटी कॉलेज में सुरक्षित रखी गयी है। (लगता है, प्रसिद्ध लेखकों की टेबिल को आयरवासी विशेष महत्त्व देते हैं, सेंट पेट्रिक हास्पिटल में डीन स्विफ्ट की टेबिल भी रखी है, जिस पर, कहा जाता है, स्विफ्ट ने अपनी प्रसिद्ध रचना 'गुलिवर्स ट्रैवेल्स' लिखी थी।) इसी टेबिल के सामने बैठकर, या खड़े होकर बार्कले ने अपना दर्शन लिखा होगा। मैंने उसका अध्ययन बी० ए० में किया था। 'खड़े होकर' शब्द से आप चौंके होंगे। यही तो इस टेबिल की विशेषता है। यह इस तरकीब से बनाई गयी है कि उसे इच्छानुसार ऊँचा या नीचा किया जा सकता है। मेरे गाइड ने बताया कि इस पर बिस्तर पर लेटे-लेटे भी लिखा जा सकता है। उसके ऊपर का पटरा भी इच्छानुसार विभिन्न कोणों पर झुकाया-उठाया जा सकता है।

केम्ब्रिज लौटने पर मुझे घण्टों कुर्सी पर बैठकर लिखना पड़ता था, जिससे मेरी कमर दुखने लगती थी। बार्कले-टेबिल से प्रेरणा लेकर मैंने एक टेबिल बनवाई, जिसके सामने खडे होकर मैं देर तक काम कर सकता था। वह इच्छानुसार उठाई-गिराई, झुकाई-उठाई तो नहीं जा सकती थी। अब जब से मुझे स्पांडिलाइटिस की तकलीफ हुई है, डाक्टर गर्दन झुकाने को मना करते हैं, ज़्यादा तकलीफ होने पर गर्दन में पट्टा भी पहना देते हैं- पर लिखना तो गर्दन झुकाकर ही किया जा सकता है। बिना गर्दन झुकाये लिखना हो तो एक दूसरी तरकीब की जा सकती है, लिखने की टेबिल को सामने से झुकाया और पीछे से उठाया जाये। कहाँ तक तरह-तरह की टेबिलें बनवाता फिरूँ, रखने को जगह भी चाहिए। इन दिनों मुझे बार्कले की टेबिल बहुत याद आई है। काश, मुझे उसका डिजाइन मिल जाता तो मैं एक अपने लिए ज़रूर बनवाता। फिलहाल, लिखना ही बन्द करने की बात सोच रहा हूँ। क्षमा करेंगे, मुख्य प्रसंग से कुछ बाहर चला गया।

डबलिन में मैं अपने शोध के सम्बन्ध में जिन लोगों से मिला, उनमें से दो के नाम और लेना चाहूँगा, एक थे आरलैण्ड अशर और दूसरी थीं सालकेल्ड ब्लनेड।

अशर मेरी ही उम्र के होंगे, स्वतन्त्र लेखन करते थे, स्वस्थ, हट्टे-कट्टे, पता नहीं अपने सिर के बाल प्रायः मुंडा क्यों रखते थे! साल-भर पहले उनकी पुस्तक Three Great Irishmen (थ्री ग्रेट आयरिशमैन) लन्दन से प्रकाशित हुई थीतीन बड़े आयरी जनों में उन्होंने ईट्स, बर्नार्ड शा और जेम्स ज्वायस को रखा था। मुझे देखकर कुछ आश्चर्य होता था, कुछ प्रसन्नता भी होती थी कि ईट्स के जिस पक्ष पर मैं काम कर रहा था उसमें बहुत लोगों की रुचि थी, शायद वे इसी कारण ईट्स के प्रति आकर्षित होते थे और कुछ दिन उस गोरखधंधे को सुलझाने में सिर खपा, प्रायः असफल हो, उनकी कविता के प्रेमी बनकर रह जाते थे। कुछ लोगों को यह सन्देह होने लगा था कि ईट्स की यह प्रदर्शनकारी विचित्र अभिरुचि महज मज़ाक तो नहीं थी, जिससे वे लोगों को अपनी ओर खींचते थे। इसी को लेकर एक दिन अशर से मेरी लम्बी बातचीत हुई। अन्त में, हम इसी परिणाम पर पहुँचे कि आयरिश आदमी कब गम्भीरता में मज़ाकिया और कब मज़ाक में गम्भीर हो जायेगा, कोई नहीं कह सकता।

उन्होंने 'टैरट' कार्डों पर अपना एक अप्रकाशित लेख भी मुझे पढ़ने को दिया था। टैरट कार्डों की एक गड्डी ईट्स के सामान में भी थी। अशर का ख्याल था कि ईट्स ने अपने कुछ प्रतीक टैरट कार्ड से उठाये थे। यह अंशत: ठीक हो सकता है, पर प्रतीकों के चुनाव के विषय में हेन की राय मुझे अधिक ठीक लगती है। जब कोई प्रतीक ईट्स को आकर्षित करता था, तब वे साहित्य, चित्रकला, लोककथा, दंतकथा, पुरा इतिहास सबमें उसे पहचानने-परखने का प्रयत्न करते थे और जब वह कई सन्दर्भो में अपनी अर्थवत्ता सिद्ध करता था तभी उसे स्वीकार करते थे। हेन का ख्याल था कि समय-स्वीकृत प्रतीकों से ईट्स के अपने गढ़े प्रतीकों की संख्या कम-से-कम चौगुनी होगी। इनमें अर्थ-संकेतों की कितनी सम्भावना छिपी है, इसे तो आगे के प्रयोग बतायेंगे, अगर आगे के कवियों ने इन्हें स्वीकारा और इन्हें प्रयुक्त किया।

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