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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


डबलिन में मैंने जिन लोगों से ईट्स के सम्बन्ध में बातें कीं, उनमें सबसे अधिक तत्त्व की बातें शायद ब्लनेड सालकेल्ड ने कहीं। जिस समय मैं उनसे मिला, उनकी उम्र लगभग सत्तर की होगी। ईट्स उस समय जीवित होते तो नब्बे के होते। वे ईट्स की पीढ़ी की कवयित्री र्थी, ईट्स के यौवन की प्रेयसी माडगान की सहेलियों में, विशुद्ध आइरिश, आयरीजन की विनोद-व्यंग्य वृत्ति से पूर्णतया चेतन्त!

उन्होंने अपनी बातों से मुझे जितना हँसाया, उतना आयरलैण्ड में किसी ने न हँसाया होगा। वे अपने बेटे-बहू और दो सुन्दर पोतियों के परिवार में चौधरानी की तरह रहती थी, जो कुछ उनके चारों ओर था, जैसे उससे पूर्णतया सन्तुष्ट-प्रसन्न। क्या आप विश्वास करेंगे कि इस बढिया ने अपनी 65 वर्ष की अवस्था में अपनी पोतियों के साथ गेलिक सीखनी शुरू की थी और अब उसमें बखूबी बात कर सकती थी!

उन्होंने ईट्स के सम्बन्ध में जो कहा, अब उसे मैं हिन्दी में आदरसूचक क्रिया के साथ न कहूँगा। शायद इससे ब्लनेड का मूड शब्दों में अधिक प्रतिबिम्बित हो सके। अंग्रेज़ी में आदरसूचक क्रिया है भी नहीं।

ईट्स की चर्चा चलने पर उन्होंने कहा, जैसे वे ईट्स के चरित्र का कोई सूत्र ही दे रही हों।

'वह व्यक्ति नहीं था, वह एक विरोधाभास था, जो उसके नामकरण के साथ ही शुरू हो गया था, विलियम बटलर ईट्स-विलियमराजा; बटलर-कलवार...'

इतना कहकर वे ठठाकर हँसी।

मैंने कहा, 'हमारे यहाँ एक कहावत है, कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा तेली।'

बोलीं, 'ईट्स दोनों एकसाथ था, एक दिन वह लन्दन के हाउस आफ लार्ड्स में भाषण दे सकता था और दूसरे दिन गालवे के मछुआरों से गप लड़ा सकता था।

'शिक्षा उसने ली चित्रकारी की,
लिखता रहा वह कविता।
पैदा हुआ प्रोटेस्टेंटों के घर,
पूजता रहा कैथलिक सन्तों को।
प्रेम करता रहा माडगान से,
पतित्व निभाता रहा जार्ज से।
(जार्ज ईट्स की पत्नी का नाम था)
जवानी में बूढ़े होने की कल्पना करता था,
बुढ़ापे में जवान होने की।

'सत्तर वर्ष की उम्र में यौन-शक्ति प्राप्त करने के लिए डा० वारनाफ से ऑपरेशन भी कराया था।'

(हमारे यहाँ इन्दौर के सेठ हुकुमचन्द ने भी कराया था।)*
 *सुना था, डा० वारनाफ यह ऑपरेशन करने के लिए एक लाख रुपये लेते थे। इसमें अण्डकोश की ग्रन्थि को बन्दर की ग्रन्थि से बदल दिया जाता था ! इसकी ओर संकेत करने को व्यंग्य से डबलिन में ईट्स को Grand old man के बजाय Gland old man कहा जाता था।

और बीस मिनट तक वे ईट्स के जीवन के विरोधाभासों की गणना ही कराती गयीं।

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