जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
डबलिन में रहते हुए मैं छह दिन काम करता, लोगों से मिलता-जुलता और सातवें दिन, यानी रविवार को सरकारी टूरिस्ट बसों से दिन-भर के लिए आयरलैण्ड के विभिन्न भागों की यात्रा के लिए चला जाता।
आयरलैण्ड के कितने पहाड़, नदी, झील, झरने, वन, उद्यान, ऐतिहासिक इमारतें, पुराने गढ़, गिरजे, खण्डरात, अनगढ़ पत्थरों से बनी गोली ऊँची कुकुरमुत्ताशक्ली मीनार, शिला-सलीब, बारीक से भद्दे नक्काशियों तक के, और बलुहे, पथरीले, कँकरीले, गहरे, छिछले समुद्र-तट मेरी आँखों के सामने घूम गये हैं, कानों में गूंजने लगी हैं गाइडों द्वारा बतायी हर स्थान से जुड़ी कहानियाँ, दंतकथाएँ, अन्धविश्वास, झूठे-सच्चे इतिहास। अगर मैं सबका वर्णन करूँ तो यह आत्मकथा नहीं, आयरलैण्ड की गाइड-बुक हो जायेगी। प्रकृति और मानव के विभिन्न रूप भी, केवल मेरी गहरी भावनाओं की छाया में सजीव हो पाते हैं और गहरी भावनाओं में आदमी ज़्यादा देर नहीं ठहर सकता। कभी किसी गहरी भावना में डूबे हुए मेरे मुँह से कविता फूटती है, इन क्षणों की उपेक्षा न कर सकूँ तो आप मेरे कवि को क्षमा करेंगे। इन सारी यात्राओं में एक समुद्र-तट भुलाये नहीं भूलता।
सर्यास्त हो गया है. पर सन्ध्या के नारंगी रंग के बादलों से अभी समद्री क्षितिज आलोकित है, पीछे निचली बंजर पहाड़ी पर एक छोटा-सा पत्थर का कॉटेज है, खस्ता हालत में, शायद बहुत दिनों से इसमें कोई रहता नहीं, कौन आया होगा कभी एकाकी इस सुनसान में रहने को! पहाड़ी की तराई से लगी सड़क पर आकर हमारी टूरिस्ट बस रुकी और सब लोग उतरकर सहसा चुप क्यों खड़े हैं ! यहाँ का उदास सौन्दर्य चुप-निश्चल होकर ही देखा जा सकता है।
सिन्धु का छिछला-छिछला तीर,
अकंपित, नीर मुकुर-सा नीर।
यहाँ लगता है कोई छोड़
गया है मन की गहरी पीर।
यह कविता मैंने किसी संग्रह में नहीं दी। हाँ, यह पूरी कविता है, पर इसी समुद्र-तट पर सुनने, सुनाने को।
आयरलैण्ड में मैं बहुत देर ठहर गया। अब बस दो कुछ लम्बी यात्राएँ करके मैं केम्ब्रिज लौट जाऊँ-एक डबलिन से स्लाइगो तक की, आयरलैण्ड के उत्तर आर-पार, पूर्व से धुर पश्चिमोत्तर; दूसरी डबलिन से किलानी तक की, आयरलैण्ड के दक्षिण आर-पार, पूर्व से धुर पश्चिम-दक्षिण। थीसिस तैयार करने के लिए अब सिर्फ छह महीने हाथ में हैं।
हेन ने मुझसे बार-बार आग्रह किया था कि जब मैं आयरलैण्ड जाऊँ तो तीन-चार दिन स्लाइगो में ज़रूर बिताऊँ, और वहाँ से कुछ मील पर ड्रमक्लिफ भी जाऊँ, जहाँ बेन बुलबेन पहाड़ी के चरणों में ईट्स अनन्त निद्रा में सोये हैं।
'वहाँ जाकर तुम कुछ देर कब्र के सामने खड़े होना। तुम ईट्स की मिट्टी के इससे अधिक निकट न आ सकोगे।*
हेन ने स्लाइगो के एक वयोवृद्ध सज्जन बर्टी ऐन्डरसन से भी मिलने को कहा था, जो ईट्स को भली-भाँति जानते थे और उनके पारिवारिक मित्र थे। 'तुम उन्हें स्लाइगो में सबसे अधिक रोचक व्यक्ति पाआगे।'
स्लाइगो मैं ट्रेन से गया, बस से भी जा सकता था, लगभग डेढ़ सौ मील की दूरी पर है डबलिन से, कोई चार घण्टे लगे होंगे सफर में। आयरलैण्ड में चाहे आप बस से यात्रा करें, चाहे रेल से, दोनों ओर आपको घनी हरियाली ही दिखाई देगी, और थोड़ी-थोड़ी दूर पर पानी के लम्बे-चौड़े फैलाव, हरे-भरे खेतों के बीच पन्द्रह-बीस घरों के छोटे-छोटे गाँव, और कहीं-कहीं पुराने या नये गिरजे आसमान में अपना सिर उठाये हुए, किसी नज़दीक के गाँव से गुज़र रहे हों तो मोटे-टाँठे गधों पर सामान लादे किसान या बिना ज़ीन-रकाब ऊँचे घोड़ों की नंगी पीठों पर सिर्फ लगाम के सहारे घोड़े भगाते लड़के, लड़कियाँ भी। नवयुवती माडगान ऐसे ही घोड़े पर चढ़कर जब पहले-पहल डबलिन आयी थी, तब ईट्स उसे देखते ही अपना दिल खो बैठे थे।
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