जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
अपराह्न में मैं पैदल जाकर लूगिल के तटीय वन-पर्वती सौन्दर्य को उसके नील जल-दर्पण में प्रतिबिम्बित देख आया। किनारे की सड़क के एक कोने से इनिसफ्री का द्वीप भी दिखाई देता है। ईट्स का वह छोटा-सा गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। सीधी-सादी अभिव्यक्ति है, भावनाओं की कोई गहराई नहीं, कल्पना की कोई उड़ान नहीं। सादगी को भी ईट्स ने उद्बोधक कैसे बनाया है! गीत को शुरू करते हैं बाइबिल की शब्दावली से-I will arise and go to my fatherSt. Luke (आई विल एराइज एण्ड गो टू माई फादर-मैं यहाँ से उठूगा और अपने पिता के पास चला जाऊँगा-सेंट लक) जो अपने ध्वनि संस्कार से हमें भौतिक संसार से ऊपर उठा देती है, फिर तो ईट्स हमें अध्यात्म की दुनिया में न ले जाकर, रूमान की दुनिया में ले जाते हैं और हम कोई एतराज नहीं कर पाते।
कुछ दूर और आगे बढ़कर 'डूनी राक' भी देख आया। राक की छाया में नीची छतों के थोड़े-से घरों की बस्ती। लगता है, किसी घर से निकलकर डूनी का फिडलर अभी अपनी फिडिल बजाने लगेगा और फिर यहाँ से लौटना असम्भव होगा। उसके आने के पहले ही यहाँ से चल देना चाहिए।
When I play on my fiddle in Doony
Folk dance like the wave of the sea.
(जब डूनी में बजता मेरा इकतारा
तब डूनी के लोग नाचते हैं ऐसे
जैसे लहरें नाच रही हों सागर पर।)
अपने मुरलीधर का ही कोई विदेशी संस्करण है।
'नाद सुनि बनिता विमोहीं घर बिसारे चीर
मुरली अधर सजी बलबीर।'
शाम को बस से रासेज़ प्वाइन्ट गया। कितने लोग, कितने जोड़े, कितने अकेले। पर वे रासेज़ प्वाइन्ट के फैलाव को भर नहीं पाते। फैलाव-जैसे किसी की प्रतीक्षा में पलक पाँवड़े बिछाये पड़ा है, अभी आये हैं, वही नहीं आया,
'आवन कह गये, अजहूँ न आये दिवस रहे अब थोरी'
मीरा, तुम्हारा स्वर कहाँ-कहाँ प्रध्वनित होता है।
दूसरे दिन सबेरे-सबेरे ड्रमक्लिफ गया, पैदल, साथ कुछ फूल ले गया था, मेरे लिए तीर्थयात्रा ही थी-रास्ते में बर्टी ऐंडरसन के आदेशानुसार ईट्स-प्रदेश के सौन्दर्य को आँखों से पीता।
ड्रमक्लिफ में सड़क के एक ओर पत्थर की गोल मीनार है, ऊपर से खण्डित; इस तरह की गोल मीनारें आयरलैण्ड में सब जगह हैं, स्लाइगो काउंटी में यह एकमात्र। बताते हैं, पुराने जमाने में इन मीनारों का उपयोग हमलावरों पर निगहबानी रखने के लिए किया जाता था। एक के बाद एक उत्तरी योरोप की चार-पाँच जातियों ने आयरलैण्ड पर हमले किये। केवल रोमन वहाँ नहीं पहुँचे, जिनसे योरोप का कोई प्रदेश नहीं बच सका था। इतिहासवेत्ताओं का कहना है कि केवल इस एक बात ने आयरलैण्ड की सभ्यता और संस्कृति को एक विशिष्टता दे दी है। खण्डित मीनार के पास ही पत्थर का बड़ा-सा सलीब खड़ा है-बारीक नक्काशी की गयी है उसके ऊपर। आयरलैण्ड के शिलासलीबों की एक विशेषता है, इनके ऊपरी हिस्से को एक चक्र से घेरा गया है। ऐसा क्यों किया गया होगा, इसका रहस्य अभी तक नहीं खुला। ईट्स को तो अपने लम्बे-गोल प्रतीकों को साथ रखने के औचित्य का एक साक्ष्य इन सलीबों में भी मिला होगा-तीर के साथ साँप, बाज़ के साथ तितली, दर्शन के साथ काव्य। एक अनुमान है, ईसाईयत के साथ लोकविश्वास को मान्यता देने का संकेत तो इन सलीबों से नहीं किया गया? ईट्स को निश्चय ऐसी कल्पना सन्तोषप्रद लगती।
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